Tuesday, 12 February 2019

तुम्हे गले लगाने की !

तुम्हे गले लगाने की !
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चाहत है  ...मेरी, 
तुम्हारी बाँहों की गोलाइयों 
में कैद रहते  हुए, ज़िन्दगी के 
दिए तमाम दर्दो से निज़ाद पाने की;

चाहत है  ...मेरी, 
मौत सी घनी ख़ामोशी को, 
भी तुम्हारे ऊपर लिखी दो, 
चार प्रेम कविता सुनाने की;  

चाहत है  ...मेरी,  
तुम्हारी इन ही बाहों में रह कर,  
उस छोटे से "राम" को फिर से एक 
बार जीने की;

चाहत है  ...मेरी,  
तुम्हे उस माँ के सामने गले 
लगाने की, जिनके लिए तुम 
आज तक नहीं निभा पायी हो, 
अपने वो वादे जो तुमने किये
थे, मुझसे प्रेम कर कर; 

चाहत है  ...मेरी,  
बस चाहत और चाहत पूरी हो 
ये भी तो जरुरी नहीं ना !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !