Monday, 4 February 2019

अपनी आत्मा के बिना !

अपनी आत्मा के बिना !
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चाहता हू अब कुछ 
पल अपने साथ बैठू 
एक कॉफ़ी हो और;

हम दोनो ढेर सारी 
बाते करे हँसे और 
खिलखिलाये जाने
दूसरे को करीब से;

मै खुद से पूछूँ कि  
इतना गम्भीर क्यों है  
और समझू खुद की भी  
मजबूरियां; 

जिस वजह से खुद मैं 
खुद को ही भुला बैठा था 
अब तक खुद को ये भी
बताऊ किसके लिए मैंने 
ऐसा किया था; 

फिर दोनों मिलकर पूछेंगे 
उस से क्यों छोड़ा है तुमने 
मुझे तंहा दिल चुराने के 
के बाद भी मेरा;  

और झगडूं उससे फिर कह दूं 
उस से कि मुझे अब उसकी कोई 
जरूरत नही है मै भी अब जी सकता 
हू अपनी आत्मा के बिना !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !