अपनी आत्मा के बिना !
•••••••••••••••••••••••••
चाहता हू अब कुछ
पल अपने साथ बैठू
एक कॉफ़ी हो और;
हम दोनो ढेर सारी
बाते करे हँसे और
खिलखिलाये जाने
दूसरे को करीब से;
मै खुद से पूछूँ कि
इतना गम्भीर क्यों है
और समझू खुद की भी
मजबूरियां;
जिस वजह से खुद मैं
खुद को ही भुला बैठा था
अब तक खुद को ये भी
बताऊ किसके लिए मैंने
ऐसा किया था;
फिर दोनों मिलकर पूछेंगे
उस से क्यों छोड़ा है तुमने
मुझे तंहा दिल चुराने के
के बाद भी मेरा;
और झगडूं उससे फिर कह दूं
उस से कि मुझे अब उसकी कोई
जरूरत नही है मै भी अब जी सकता
हू अपनी आत्मा के बिना !
No comments:
Post a Comment