Sunday, 17 February 2019

सवा सौ करोड का जज्बा !

सवा सौ करोड का जज्बा !
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वतन की खातिर जान दी, 
उसका क्या मलाल है; 

वतन की आन के आगे, 
आज सब कुछ फीका है,

आज सवा सौ करोङ में,
क़ुरबानी का जज्बा जागा है;

वक्त पड़ने पर मैं भी अब,  
कुछ न कुछ कर जाऊंगा;

वतन-ए-अमन की खातिर 
मैं भी अपनी जान गवाऊंगा;

सिखलाऊंगा अपनी औलादों को,
कभी न हारना भेड़ियों की तदादों से;

वतन पर जान देने में ही रहमत है ,
ये सब से प्यारी जन्नत है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !