सवा सौ करोड का जज्बा !
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वतन की खातिर जान दी,
उसका क्या मलाल है;
वतन की आन के आगे,
आज सब कुछ फीका है,
आज सवा सौ करोङ में,
क़ुरबानी का जज्बा जागा है;
वक्त पड़ने पर मैं भी अब,
कुछ न कुछ कर जाऊंगा;
वतन-ए-अमन की खातिर
मैं भी अपनी जान गवाऊंगा;
सिखलाऊंगा अपनी औलादों को,
कभी न हारना भेड़ियों की तदादों से;
वतन पर जान देने में ही रहमत है ,
ये सब से प्यारी जन्नत है !
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