वक़्त करता है इंतज़ार !
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हाँ देखा है मैंने वक़्त को,
मोहब्बत का इंतज़ार करते हुए;
और कभी कभी जब उसे लगता है,
मोहब्बत बहुत पीछे रह गयी है;
तो भी वो उसका साथ पाने के लिए,
उसका इंतज़ार भी करता है;
मोहब्बत वक़्त की नियति तो
नहीं बदल सकती, लेकिन अगर
उसके भाग्य में ना भी लिखा हो;
इश्क़ का साथ पाना; तो भी वो
कोशिश तो करती है बदलना,
लिखा नियति के लिखे भाग्य को;
लेकिन जब मोहब्बत नहीं समझती,
उस वक़्त की नज़ाकत को तब;
मोहब्बत पीछे छूट जाती है, और
वक़्त आगे निकल जाता है;
फिर इसी ज़िन्दगी की भाग दौड़
में, उनके हाथ खाली रह जाते है;
जो नहीं चल सकते वक़्त के साथ
कदम से कदम मिलाकर !
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