सत्ता में भरी दलदल है !
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वो कहता है , सच में बल है,
दुनिया कहती हैं ,कितना भोला है;
वक़्त के आगे चल नहीं सकता,
अपनों के हाथों ही ख़ुद घायल है;
इन सत्ताधारियों से आशा कैसी,
सत्ताधीशों के दल में भरी दलदल है;
जिनके कमर पर कल तक ओछा पेंट था,
आज उनके तन पर दस लाख का सूट है;
यहाँ आज कुछ भी नहीं बदलने वाला,
ये प्रश्न आने वाला कल पूछ रहा है;
मुक्ति दूसरों को दे भी तो कैसे,
गन्दगी से ख़ुद माँगता मुक्ति गंगा जल है;
कोहराम ज़्यादा है , विचार कम है,
ये दिमागों में कैसी उथल-पुथल है !
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