बोलती तुम्हारी ऑंखें !
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मैंने सुना है बोलते अक्सर
तुम्हारी इन आँखों को;
तब भी जब तुम नहीं थी,
मेरे सामने बस मैं था और
थी, ये बोलती तुम्हारी आँखें;
उसी ने किया था सबसे
पहले, इकरार मेरे प्रेम का
वो भी तुमसे बिना पूछे;
और मैंने मान लिया था,
उसके इकरार को ही प्यार;
मुझे क्या पता था कि तुम
करोगी मुझे प्यार, यु बर्षों
इतना परखने के बाद;
हां तुम्हारी आखों में मेरी
रूह, आज भी ठीक वैसे ही
मचलती है;
जैसे वो मचली थी, उस पहले
दिन जब तुम नहीं थी, मैं था
और थी, तुम्हारी बोलती आँखें;
और हाँ मुझे पता है, हर रूह की
किस्मत में कहा लिखा होता है,
यु किसी की आँखों में मचलना !
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