कड़वा सा उनींदापन !
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एक कड़वा सा उनींदापन
आ बैठता है बिलकुल मेरे पास;
ठीक उस वक़्त मेरा दिल
चाहता है अपने दीये जलना;
फिर उन्ही दीयों की रोशनी में
उसी स्याही को लौटा दू;
अपनी लिखी सारी प्रेम कवितायेँ
जिस स्याही से वो मैंने लिखे थे;
लेकिन फिर अकेले में मैं जब ये
देखता हु अपनी देह का कितना
हिस्सा बोया है;
अब तक मैंने उसकी देह में ठीक
उसी पल मेरा वो कड़वा सा उनींदापन
चुपचाप उठकर मेरे बगल से चल देता है;
उस ओर जहा से वो आया था
चलकर मेरे पास पाकर मुझे
नितांत अकेला !
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