Sunday, 3 February 2019

कड़वा सा उनींदापन !


कड़वा सा उनींदापन !
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एक कड़वा सा उनींदापन 
आ बैठता है बिलकुल मेरे पास; 

ठीक उस वक़्त मेरा दिल 
चाहता है अपने दीये जलना;

फिर उन्ही दीयों की रोशनी में
उसी स्याही को लौटा दू; 

अपनी लिखी सारी प्रेम कवितायेँ
जिस स्याही से वो मैंने लिखे थे;

लेकिन फिर अकेले में मैं जब ये 
देखता हु अपनी देह का कितना
हिस्सा बोया है;

अब तक मैंने उसकी देह में ठीक  
उसी पल मेरा वो कड़वा सा उनींदापन 
चुपचाप उठकर मेरे बगल से चल देता है; 

उस ओर जहा से वो आया था
चलकर मेरे पास पाकर मुझे 
नितांत अकेला !  

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !