कई बार तो
समंदर मेरी आँखों में
उतर आता है जब
प्रश्न करती है मुझसे
मेरी ही रूह
राम क्या कभी होंगे
उसके वादे पुरे ?
फिर भी तुम्हारे
वादों पर करता हुआ
इकरार उन्ही के
बोझ तले दबा
जा रहा हु मैं अब
और तुम भी
नित्य नए वादे
किये जा रही हो
पर वादे सारे है
अब तलक अधूरे
तन्हाईओं में घिरा
करता हु इन दीवारों
से अकेले में बात
बातें जिसमे एक सिर्फ
तुम शामिल हो
कई बार तो
समंदर मेरी आँखों में
उतर आता है जब
प्रश्न करती है मुझसे
मेरी ही रूह
राम क्या कभी होंगे
उसके वादे पुरे ?
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