कभी तो मिलो तुम मुझे
बरसती बारिश की बूंदो में
तब मैं समां जाऊंगा तुम्हारे
लरजते इस सीने में बनकर
बरसती बारिश की बूंदो सा
कभी तो मिलो तुम मुझे
जब चले धीरे धीरे वो पुरवाइयाँ
उतर जाऊँगा मैं तेरे कानो में
बनकर पपीहे की पीहू पीहू
कभी तो चलो तुम इस डगर
पर मेरे पैरो पर अपने पैरो रखकर
ताकि दिखा सकू तुम्हे मैं तुम्हे
डगर अपनी मंज़िलों की
कभी तो मिलो तुम मुझे
इन काली स्याह रातों में
ताकि मैं महसूस सकू
मायने इन स्याह रातों के
कभी तो मिलो मुझे सुबह के पहर
ताकि देख सकु सुबह के सूरज
की तीक्ष्ण किरणों को
हां कभी तो मिलो तुम मुझे
बरसती बारिश की बूंदो में
तब मैं समां जाऊंगा तुम्हारे
लरजते इस सीने में बनकर
बरसती बारिश की बूंदो सा
कभी तो मिलो तुम मुझे
जब चले धीरे धीरे वो पुरवाइयाँ
उतर जाऊँगा मैं तेरे कानो में
बनकर पपीहे की पीहू पीहू
कभी तो चलो तुम इस डगर
पर मेरे पैरो पर अपने पैरो रखकर
ताकि दिखा सकू तुम्हे मैं तुम्हे
डगर अपनी मंज़िलों की
कभी तो मिलो तुम मुझे
इन काली स्याह रातों में
ताकि मैं महसूस सकू
मायने इन स्याह रातों के
कभी तो मिलो मुझे सुबह के पहर
ताकि देख सकु सुबह के सूरज
की तीक्ष्ण किरणों को
हां कभी तो मिलो तुम मुझे
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