लोगो की भीड़ से घिरी
तुम्हारे पास आने को
आतुर घबराई सी जड़वत
वंही खड़ी हु पिछले तकरीबन
पांच साल से ;सोचती हुई
की कैसे आ पाउंगी पास तुम्हारे
बिना किसी को बताये
बिना किसी से रास्ता पूछे
बिना अब और घबराये
बिना किसी के बहकावे में आये
बिना किसी को दर्द दिए
लोगो की भीड़ से घिरी
तुम्हारे पास आने को
आतुर घबराई सी जड़वत
वंही खड़ी हु पिछले तकरीबन
पांच साल से ;सोचती हुई
की ना आने से भी गर तुम
यु ही बने रहो मेरे जीने की वजह
तो कितना अच्छा हो
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