अपने इस जिद्दी चाँद को
तुम्हारे लिए कभी
दूज का तो कभी
हरतालिका तीज का
तो कभी करवा चौथ का
और कुछ ना मिले तो
कभी पूनम का कभी
अमावस का हुआ फिरता है
मुझे डर है कंही ये घटते
बढ़ते इस क्रम में बुझ ना जाए
फिर मत कहना कोई तो मुझे
बतलाता मैं उसे समझाती ना
सुनो तुम समझाओ ना
अपने इस जिद्दी चाँद को
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