Friday, 23 February 2018

वो जताती रही अफ़सोस

वो जिससे जुड़े थे मेरे 
सारे एहसास वो ही  
उन एहसासो को 
रौंद कर जताती रही अफ़सोस  
और बस इतना चाहती रही मुझसे 
कि मैं वो हर बात समझू 
उसकी जो रह जाती है अनकही
वो जिसने जाना समझा मेरी 
बेइंतेहा चाहत को भली भांति 
वो उसी चाहत को कर दरकिनार 
हर बार बस इतना चाहती रही मुझसे 
कि जब भी कोई गलती हो उससे 
मैं करता रहु उन्हें नज़रअंदाज़ 
वो जिसने खायी मेरी कसमे 
निभाने को अपने सारे वादे 
वो ही तोड़कर उन सारी कसमों को 
चाहती रही मुझसे की मैं ना करू 
परवाह उन टूटती कसमों का 
और चाहता रहू उसे यु ही बेइंतेहा  
वो जिससे जुड़े है अब भी मेरे सारे एहसास
रौंद कर जताती है अफ़सोस अब भी 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !