जिस निशा का प्याला
पूरी की पूरी रात कलानिधि
के निचे पड़ा रहने के बाद भी
हयात के मधु से नहीं
भर पाता वो निशा ही
समझ सकती है मधु
का सही सही अंशदान
कियोकि उस निशा के
प्याले से उतर चुकी
होती है कलानिधि की
कलई भी तो उस प्याले
में पड़ी उसकी कल्पना
कितनी कड़वी हो जाती है
इस कड़वाहट का स्वाद भी
वो समझ सकता है जो
उस निशा को तहे दिल से चाहने
का साहस करता है और उसे
ये भी नहीं पता होता कब तक
उसे निशा के प्याले की
कड़वी हुई कल्पना को
पीते रहना पड़ेगा
पूरी की पूरी रात कलानिधि
के निचे पड़ा रहने के बाद भी
हयात के मधु से नहीं
भर पाता वो निशा ही
समझ सकती है मधु
का सही सही अंशदान
कियोकि उस निशा के
प्याले से उतर चुकी
होती है कलानिधि की
कलई भी तो उस प्याले
में पड़ी उसकी कल्पना
कितनी कड़वी हो जाती है
इस कड़वाहट का स्वाद भी
वो समझ सकता है जो
उस निशा को तहे दिल से चाहने
का साहस करता है और उसे
ये भी नहीं पता होता कब तक
उसे निशा के प्याले की
कड़वी हुई कल्पना को
पीते रहना पड़ेगा
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