Wednesday, 29 November 2017

पैरो के निशान

सुनो मैं रख देता.
एक एक लब्ज़ 
मेरे तुम्हारे पैरो 
के निशान पर ,
और तय कर 
लेता सारे फासले, 
जो थे हमारे
दरमियान, पर तुम्हे
इतना तो पता है ना, 
वो निशान होने चाहिए,
इसी धरा पर क्योकि ,
उड़ते पंछियों के निशान, 
नहीं ठहरते बादलों पर 

Tuesday, 28 November 2017

वो दौड़ी आये पास मेरे

क़दम उसी मोड़ 
पर जमे हैं मेरे
जहा तुम छोड़ 
कर गयी थी मुझे,    
पर अपनी नज़र 
समेटे हुए खड़ा हूँ ,
मन ये कह रहा है 
पलट के देखूँ ,
ख़ुदी ये कहती है 
की अब एक मोड़ 
मुड़ ही जाऊ , 
मगर एहसास 
कह रहा है ,
खुली खिड़कियों 
के पीछे उसकी  
दो आँखें झाँकती होगी  ,
अभी मेरे इंतज़ार में 
वो भी जागती होगी ,
कहीं तो उस के 
दिल में दर्द होगा ,
उसे ये ज़िद है 
कि मैं पुकारूँ 
मुझे तक़ाज़ा है 
की वो दौड़ी आये 
अब पास मेरे,  
क़दम अब भी 
जाने किन्यु उसी मोड़ 
पर जमे हैं मेरे,
जहा तुम छोड़ 
कर गयी थी मुझे 

तुम्हारी आँखे बोली थी

उस दिन मुझे 
ऐसा लगा था 
जैसे तुमने ही 
मुझे आवाज़ दी हो 
और मैं दौड़ा चला
आया था तुम्हारा 
हाथ थामने जैसे
बस इंतज़ार था 
मुझे तुम्हारे बुलावे का
पर मुझे तो अब तक 
नहीं पता चला 
कि उस दिन 
तुम्हारी आँखे
हंसी थी या बोली थी
या फिर उदास सी थी..
जिसको मैंने सही 
पढ़ा था या गलत 

Sunday, 26 November 2017

जादूगरनी रात

जिस तरह 
जादूगरनी रात 
करती है सम्मोहित 
उजालो को
ठीक उसी तरह
तुम्हारा अक्स
भी छा जाता है
मेरे वज़ूद पर 
तुम्हीं कहो
कैसे रहु दूर 
तुमसे कि रात 
कभी भूल से भी
नहीं छोड़ा करती 
अपनी परछाई 
और तुम ना जाने 
कैसे रहती हो दूर
यु मुझसे 

Saturday, 25 November 2017

उम्र का एक छोटा सा हिस्सा


जब तुम अपनी 
उम्र का एक छोटा 
सा हिस्सा कर रही
थी मेरे नाम उसी 
वक़्त तुमने विरह 
के एक बड़े से टुकड़े 
को भी न्योता दे ही 
दिया था लगाने 
सेंध अपने जीवन के
अनगिनत पलों में
पर शायद उस वक़्त 
तुमने सिर्फ अपने 
हिस्से के विरह की 
परवाह की पर
तुमने सोचा ही नहीं 
वो सहन शक्ति मुझमे
कहा से आएगी मैं 
तो ठहरा एक पुरुष 
कहा थी मुझमे वो 
सहनशक्ति बोलो ?

Friday, 24 November 2017

दिसंबर आने वाला है


बहुत याद आती है 
मुझे तुम्हारी ,
अब तो आ जाओ 
तुम मेरे पास,
की दिसंबर फिर 
एक बार आने वाला है, 
धुप भरे दिन और
शर्द ठिठुरती रातें
गरमागरम कॉफी 
और मूंगफली के 
दिन आने वाले है ,
अब तो आ जाओ 
तुम मेरे पास,
ये सब फिर से 
तुम्हे बुलाते है 
बैठेंगे देर तक 
रात को रजाई में 
चंदा फिर कभी 
नहीं मुझे चिढ़ा 
पायेगा और कोहरा
भर आएगा हमारे 
कमरे में अलाव भी 
फिर क्या कर पायेगा
फिर हम दोनों मिलकर
सुलगाएँगे "सिगड़ी"
"देह"की की चली 
आओ तुम पास मेरे 
अब की दिसंबर 
आने वाला है

Thursday, 23 November 2017

मेरे शब्द तुम्हे...तलाशते है ..

तलाशते रहते है ..
मेरे शब्द तुम्हे...
तुम जो नही 
आस पास मेरे 
कुछ लिखते ही 
नही ये सब्द मेरे ...
मेरे शब्द पिरोते है ,
सिर्फ एक तुम्हे....
ये तो लिखते है ..
तुम्हारे चेहेरे की 
उदासियाँ और तुम्हारी 
आखों की गहराइयाँ...
कि तुम नही हो तो,
शब्द पहचानते नही 
मेरी भी परछाईयाँ....
कि इन शब्दों को..
तुम्हारी खामोशियों को...
समझने का हुनर है ..
जिसे तुम लब्ज़ 
नही दे पाती हो , 
वो शब्द बन कर...
कागज पर उतरते है ...
ये शब्द ही तो है..
जो तुम्हे लिख कर..
मेरे दिल में उतरते जाते है...
तलाशते है फिर..
मेरे शब्द तुम्हे...!!!

Wednesday, 22 November 2017

मैं यु ही नहीं गुनगुनाता ...


मैं यु ही नहीं 
आता जाता गुनगुनाता ...
इठलाता हँसता और हंसाता ...
वो पल जो बीतते है 
साथ तुम्हारे  ...
वो ही तो है 
मेरे अन्दर दहकते...
दह्काते मचलते...
मचलाते मेरे 
मन को कुछ यु
जैसे तुम बसी हो 
मेरे अंदर एक खुशगवार 
मौसम की तरह 
कभी दिसंबर की 
ठण्ड सी रजाई में दुबकी
कभी अप्रैल की तरह बसंत 
सी खिली खिली
कभी मई और जून 
की तरह चिलचिलाती
तो कभी अगस्त के 
सावन की तरह
फुहारे बरसाती 
मैं यु ही नहीं 
आता जाता गुनगुनाता ...

Monday, 20 November 2017

अपनी गोद में उसे सुलाना तुम

सुनो आज तुम 
चाँद को बिंदी 
बना कर भले ही 
मत लगाना और  
आँचल में सितारे 
भी ना टांकना 
और अपनी देह 
के लिए नयी उपमाएं
तो बिलकुल मत 
मांगना किन्योकि  
काम के बोझ से 
थका हरा वो 
जब लौटे ऑफिस से 
प्यार से लिटा लेना 
अपनी गोद में उसे और 
मलना उसके बालों में 
जैतून का तेल  
को अपने अंगुलिओं के 
पोरों से अच्छी तरह  
और बच्चों सी गहरी 
नींद सुला लेना  
देखना सुबह उसकी 
कितनी सुहानी होती है  …
ऐसा कभी कभी 
किया करो तुम 
जो तुम्हारे और 
तुम्हारे बच्चो के लिए
दुंनिया जहाँ की खाक 
छानता है उसे भी 
जरुरत होती है 
तुम्हारे स्नेह की 

Sunday, 19 November 2017

जूड़े को खोल आना


जब भी आओ तुम आना 
सारे बंधन उतार  
छोड़ आना उन्हें
उसी देहरी पर 
क्लच को झटका 
देना बालों से 
और सुबह दस 
बजे से कसे 
जूड़े को खोल आना  
साथ ही निकाल आना  
अपनी साड़ी के 
पल्लू की सारी पिनें
और नीली वाली 
हवाई चप्पल सी 
बेफिक्री लिए आना  
अपने प्रेमी
के पास

Saturday, 18 November 2017

आँखें समंदर हुए जाती है

सोचा था इस 
मेरी मुट्ठी में  
संभाल कर और  
सबसे छुपा कर 
रख लूंगा तुम्हे ,
बड़े जतन से 
बंद की थी मुट्ठी 
मैंने रख कर 
तुम्हे यु अंदर ,
पर न जाने कैसे 
और कब तू फिसल 
गयी यु समय की 
तरह और छोड़ गयी 
सूखी रेट की तरह 
किरकिरी मेरी ही 
मुट्ठी में और 
जब देखता हु अब
खुद की मुट्ठी तो 
आँखें समंदर हुए
जाती है  ..

Thursday, 16 November 2017

तुम्हारी वो नज़रअंदाज़ी

मेरी अभिव्यक्ति 
को पढ़कर भी ,
यु जितना आसान 
होता है तुम्हारे लिये 
खामोश रहना ,
उतना ही मुश्किल 
होता है यु रोज रोज 
मेरे लिये तुम्हारा 
वो प्यार लिखना....
जितना आसान होता है 
तुम्हारा मुझे देख कर भी,
यु सुबह सुबह 
नजरअंदाज करना,
उतना ही मुश्किल 
होता है मेरे लिए 
तुम्हारी वो नज़रअंदाज़ी 
के अंदाज़ लिखना...

इंतज़ार की सीमाए..

इंतज़ार है मुझे ,
कि कभी तो मेरे 
इंतजारो की सीमाए..
बढ़कर तुम्हे छू ही लेंगी,
और तुम्हे मेरे इंतेज़ारों 
का एहसास होगा,
तब तुम चुपके से 
आगे बढ़कर मेरा 
हाथ थाम लोगी,
मेरे बिखरे सपनो 
को समेट कर,
उनमे रंग भर दोगी 
इंतज़ार है मुझे ,
की जब तेरे 
दिल की धड़कन,
मेरे दिल की 
तरह ही धड़केंगी..
जब हम होंगे 
साथ-साथ 

Wednesday, 15 November 2017

ज़िन्दगी की बारिश


ज़िन्दगी की बैचेनियों से ;
घबराकर ....और डरकर ...
मैंने मन की खिड़की से;
बाहर झाँका .........
बाहर ज़िन्दगी की बारिश 
जोरो से हो रही थी ..
वक़्त के तुफानो के 
साथ साथ किस्मत 
की आंधी भी थी.
सुखी हुई आँखों 
से देखा तो ;
दुनिया के किसी 
अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी 
हुई तुम थी 
शायद अपनी 
ज़िन्दगी को तलाश
रही थी और इधर मैं

Tuesday, 14 November 2017

चांदनी सो रही थी

उस लम्हें में,
रात का स्याह 
रंग जब बदल 
रहा था तुम 
याद तो है ना  
चांदनी मेरा हाथ 
थामे सो रही थी 
गहरी नींद में, 
और रौशन कर 
रही थी मेरे 
जंहा का हर  
एक एक कोना...
और मैं इस 
चिंता में डूबा था 
की कंही मेरी 
चांदनी की नींद 
ना उचट जाए 
और वो उठते 
ही कहे "राम"
मुझे जाना है

Monday, 13 November 2017

एक हसीं सी शाम

एक परिधि है
मेरी जहाँ मेरे 
बीतते दिन 
के सूरज की 
आखिरी किरण 
मेरे इस प्यारी सी  
चाँद की चांदनी 
को देखकर 
थोड़ी सी सकुचाते हुए 
अपने दिन को 
अलविदा कर देती हैं, 
और एक हसीं सी 
शाम मेरे नाम यु 
रोज कर जाती हैं...

Saturday, 11 November 2017

अभिव्यक्ति की परिभाषा


कई बार दिल करता है 
की कुछ नाम दूं 
इसे या फिर इसे  ;
जोड़ दूं अपने 
मौन के साथ
किसी मौसम का 
नया रंग हो शायद
या फिर हो ज़िन्दगी 
की अनजानी आहट
एक सुबह हो ,
सूरज का नया रूप 
लिये पता नहीं …..
मेरी अभिव्यक्ति की ये 
नयी परिभाषा है
तेरा नाम क्या है 
मेरी ज़िन्दगी  ?

Thursday, 9 November 2017

क्या तुम सुन पाती हो .....मौन को

मौन के भी 
शब्द होतें है,
ये मैंने महसूस 
किया तुमसे मिलकर 
क्या तुम उन्हें 
सुन पाती हो .....
जब कभी मैं
नाराज़ हो जाता हु
तुमसे तुम्हारी ही
गलती पर और 
कायम होता है 
मौन हम दोनों 
के बीच और वो
मौन तुम्हे भी 
कर देता है मौन
ये कैसे-कैसे 
नये अहसास है
जो मुझे हो रहे है 
तुमसे मिलने के बाद 

मेरी रातें गुजर जाती है

मेरे आँसुओं की बारिश 
से भीगी मेरी ही रातों में 
मेरी ही खिड़की के झरोखों 
से आती हुई रोशनी के बीच
हलके अँधेरे और हलके उजाले 
की छुटपुट आहटों के बीच हमेशा
लगता है जैसे तुम आयी हो ?
फिर सिलसिला शुरू होता है 
तुम्हे खोजने का पुकारने का 
तुम कंहा हो और ये सिलसिला 
अलसुबह तक यु ही चलता रहता है 
फिर कंही जा कर एहसास होता है 
वो मेरा भ्रम था तुम तो आयो ही नहीं 
भीगी पलकों और रुंधे गले के साथ 
लौट आता हु अपने बिस्तर पर  
कुछ इस तरह गुजर जाती है मेरी रातें 

Wednesday, 8 November 2017

तुम्हारी चुप्पियाँ


मै समेट कर रख लूंगा 
तुम्हारी चुप्पियाँ 
और यादों से कहूंगा 
बहना बंद करो 
पत्थरों से पानी 
नहीं निकलता 
तुम्हारी कोहनियाँ 
छिल जाएँगी 
लहूलुहान हो जाएँगी 
आंसुओं के सूखने के बाद 
नमक नहीं बहता 
बस जम जाता है 
मन के किसी कोने में 
यादों की ईंट चिन कर 
एक नमक का 
बांध बनाना है 
ये दर्द फ़िर नहीं 

गुनगुनाना है
बिना किसी शिकायत 

के जीना है और 
जाते समय 
सारा कुछ साथ 

लेकर जाना है

Tuesday, 7 November 2017

तन्हाई के बादल

विरह का सावन 
ही देखा है मैंने  
अब तक जंहा 
तन्हाई के बादल 
घेरे रहते है और 
मेरे दिल की गीली 
ज़मीन पर बोया हुआ 
तुम्हारी यादों का बीज
अंकुरित हो उठता है...
आँखों के मानसून से
भीग उठती है 
दिल की कायनात
वक्त की गर्द से ढकी
मेरे संयम की दीवार का 
ज़र्रा ज़र्रा चमक उठता है 
धुलकर और तब
तेरे और मेरे बीच
नहीं रहता वक्त का फासला
रूहें मिलती हैं पूरी शिद्दत से
और मोहब्बत को मिलते हैं
नए मायने....

Monday, 6 November 2017

पूर्णविराम

कितनी उम्र 
गुजारनी पड़ती है अकेले,
एक हमसफ़र पाने को    
कैसे गतिमान होता है ,
हमारा अकेलापन उस 
हमसफ़र तक पहुंचने को,
लेकिन ये हम में से किसी को 
नहीं पता होता की    
उस तक पहुंचने के बाद
मिलेगा पूर्णविराम 
हमारी चाहत को,
या दुनियावी  दिखावे के कारन 
हम कंही गाला घोंट देंगे
उस चाहत का 

Saturday, 4 November 2017

तुम्हारे अस्तित्व की चादर

वो दिन भी 
अच्छी से आज 
भी याद है मुझे,
जब मैं चुपके से 
मैं तुम्हे टुकुर-टुकुर 
ताका करता था ,
जैसे तुम्हारे अस्तित्व 
की चादर हटाकर 
ढूंढ रहा था मैं ,  
कोई जाना-पहचाना 
सा चेहरा,
मैं लाख मना करू  
पर मुझे था इंतज़ार 
जरूर किसी का 
वो दिन भी 
अच्छी से आज 
भी याद है मुझे,
जब मैं चुपके से 
मैं तुम्हे टुकुर-टुकुर 
ताका करता था ,
वो दिन तुमने 
अपने हाथो लौटाए
है बैरंग अब चाहती हो ,
फिर वो लौट कर आये वापस 
पर जो दिन बीत जाते है ,
वो कंहा आते है 
लौट कर वापस बोलो 

Friday, 3 November 2017

तुम्हारी अभिलाषा


हाँ मुझे है
तुम्हारी अभिलाषा,
क्योंकि तुम्हारा
साथ कभी भी
मुझे भटकने
नहीं देता...
तुम्हारा कोमल सा,
नरम सा स्पर्श
मुझे कोई तकलीफ
नहीं देता...
तुम्हारा मेरे
जीवन में होना
मुझे कभी शुन्य
नहीं होने देता...
शायद ये तुम्हारी
अभिलाषा ही है,
जो मेरे जीवन को संपूर्ण बनाती है..

Thursday, 2 November 2017

माँगा था साथ


मैंने कुछ भी 
तो नहीं माँगा 
तुमसे एक 
ज़िन्दगी भर
के साथ 
के अलावा 
तुमने बदले में  
घबराकर मुझसे 
मेरी रातें ही 
मांग ली और 
देखो ना मैंने
कुछ सोचे बिना 
ही तुम्हे दे भी दी 
अपनी रातें 

Wednesday, 1 November 2017

तेरे जिस्म में एहसास बन समाया हु

तुम्हारी यादो 
के जिस्म में 
एहसास बन 
समाया हु मैं ,
जिन्हें यादो संग 
मैंने पहना हुआ है ,
और अब इसी लिबास 
को पहन रखना 
चाहता हु ,
मैंने तुम्हारे एहसास को 
किताबो में बांध 
लिया है हर्फो संग 
रोज अक्षर दर अक्षर 
सजाया करता हु ,
तेरे नाम से 
हर एक हर्फ़
चमकता है,
तेरी आँखों की 
ख़ामोशी से 
अपना नाम जोड़कर 
कविता लिखता हु
रात भर और , 
सिमटता रहता हु
तुम संग सारी रात 
यंहा इन किताबो में 
हर्फो में और रात में  ,
तुम बिलकुल मेरे 
पास हो साथ हो 
अभी। ..

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !