रात अँधेरी काली-काली
आँख मिलाकर कुछ कहती है ;
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
सुनसान राह वीरानी सी
तेज़ हवाएं हिलोरे ले ले पूछती है
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
एक ओर से धरती की गहराई
दूसरी ओर से आकाश का
विशाल आकार पूछता है
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
इतरा-इतरा कर मेरे ही
अश्को की बुँदे मुझे
भिगो-भिगो कर पूछ रही है
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
सूखे पत्तों की उड़ती लड़ियाँ
सरसराहट कर पूछती है मुझसे
वो तुमसे दूर किन्यु है ?
और तुझे अपने पास
रखने की मेरी चाहत अब
मुझे रुलाती बहुत है