Tuesday, 6 June 2017

मेरा तन बादल


अक्सर जब भी मैं 
तुम्हारे खयालों
में गुम रहता हूँ तो ,
मेरा तन बादल बन 
जाता है और मेरी 
आँखों को पर लग जाते है 
मन पंछी बन उड़ जाता है ......
और बदल उमड़ उमड़ कर
तुझपर बरस जाने को 
तड़प उठता है 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...