Saturday 31 August 2019

मेरी आकंठ प्यास !


मेरी आकंठ प्यास !

तुम्हारे छूने भर से 
नदी बन तुम्हारे ही 
रग-रग में बहने को 
आतुर हो उठती हूँ !
तुम बदले में रख देते 
हो कुछ खारी-खारी बूंदें
मेरी शुष्क हथेलियों पर 
जो चमकती हैं !
तब तक मेरी इन 
हथेलियों पर जब तक 
तुम साथ होते हो मेरे !
तुम्हारे दूर जाते ही 
लुप्त हो जाती है 
ठीक उस तरह 
जैसे सूरज के 
अवसान पर 
मृगमरीचिका 
लुप्त हो जाती है ! 
तब मेरी आकंठ प्यास 
को तुम्हारी वो कुछ 
खारी-खारी बूंदें भी 
अमूल्य लगने लगती है !

Friday 30 August 2019

जिन्दगी की भागमभाग !


जिन्दगी की भागमभाग ! 

जिन्दगी की इस भागमभाग 
में अब तक भाग ही रहे हो तुम 
इसलिए तो कभी समझ ही नहीं पाए 
मेरी उर्वर आँखों की नीरवता में बसा 
जो स्नेह है एक सिर्फ तुम्हारे लिए 
मेरे कोमल मन में जो प्यार है 
वो एक सिर्फ है तुम्हारे लिए है 
मेरे स्पर्श में जो गर्माहट है 
वो भी है एक सिर्फ तुम्हारे लिए है 
मेरे इन अहसासों में जो नर्मी है 
वो भी तो एक सिर्फ तुम्हारे लिए है 
जिन्दगी की इस भागमभाग में 
कभी महसूस ही ना कर पाए तुम 
उन फूलों की खुशबू जो दबे रह 
गए हैं कहीं मेरे दिल के वर्क में 
जिन्दगी की इस भागमभाग में 
तुम कभी जान ही नहीं पाए मेरी 
उन अनकही बातों के अद्भुत अर्थ को 
तभी तो अब तलक खुद को मेरे 
पास ही नहीं ला पाए हो तुम 
जिन्दगी की इस भागमभाग में
अब तक भाग ही रहे हो तुम 
इस भागमभाग में क्या क्या खोया है 
तुमने ये अब तक जान ही नहीं पाए हो तुम !

Thursday 29 August 2019

पूर्णताः का घूंट पिला !


पूर्णताः का घूंट पिला !

तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी गर्म सांसें तुम्हारे 
गालो से टकराकर तुम्हारे 
पास होने का एहसास मुझे 
दिला सके ! 
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की तुम्हारे बदन की खुसबू 
मेरे सांसो में घुलकर मुझे 
पूर्णताः का घूंट 
पिला सके !
तुम आओ मेरे पास इतनी 
कि तुम्हारी बंद आँखों में 
तैरते सपने मेरे होंठो का 
स्पर्श पाकर मन ही मन 
इतरा सके !
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की तुम्हारे गेसुओं में मेरी 
अंगुलिया फिसलती हुई 
तुम्हे सकु के कुछ पल 
दिला सके !
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी बाँहों के घेरे में लिपटा 
तुम्हारा ये कोमल तन मेरी 
सारी कायनात को 
हिला सके ! 
तुम आओ मेरे पास इतनी 
की मेरी गर्म सांसें तुम्हारे 
गालो से टकराकर तुम्हारे 
पास होने का एहसास मुझे 
दिला सके ! 

Wednesday 28 August 2019

सूरज का सिन्दूर !


सूरज का सिन्दूर !

चाहता हूँ अब हर शाम 
मैं भी उतरना तुझमे 
कुछ इस तरह से जैसे 
दिन भर का तपता सूरज 
शाम को समंदर में उतरता है  
तो उसकी लहरें कुछ यूँ 
लगती हैं कि जैसे उतर 
रहा हो उनका सारा का 
सारा नमक समंदर में  
और सूरज भर रहा हो 
तन्मयता से अपना सारा 
सिन्दूर उसमे ठीक वैसे ही 
मैं भी चाहता हूँ जब तुम 
अपने लबों को रख कर 
मेरे लबों पर गुजरो मुझमे से  
तो यूँ लगे जैसे की मेरे 
जिस्म से उतर कर मेरा
ही जिस्म चढ़ गया हो 
तुझ पर और मेरी रूह के 
पांव ना टिके धरती पर 
और वो बस उड़ती रहे 
हवाओं में !

Sunday 25 August 2019

घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥


नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की 
हाथी घोड़ा पालकी ओ जय कन्हैया लाल की 
घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥१॥
यशोधा के घर लाल भयो जय कन्हैया लाल की
वासुदेव के घर वसुदेव भयो जय कन्हैया लाल की
देवकी के घर नंदन भयो जय कन्हैया लाल की॥२॥
नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की 
हाथी घोड़ा पालकी ओ जय कन्हैया लाल की
घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥३॥
बृषभानुलाली घर प्रेम भयो जय कन्हैया लाल की
रुक्मणि घर वर भयो जय कन्हैया लाल की
मीरा के घर गिरधर भयो जय कन्हैया लाल की ॥४॥
नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की 
हाथी घोड़ा पालकी ओ जय कन्हैया लाल की
घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥५॥
कुंती के घर भ्रातृजः भयो जय कन्हैया लाल की
सुदामा घर सखा भयो जय कन्हैया लाल की
अर्जुन घर सारथी भयो जय कन्हैया लाल की ॥६॥
नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की 
हाथी घोड़ा पालकी ओ जय कन्हैया लाल की
घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥७॥
गोपी गोपियों के घर रास भयो जय कन्हैया लाल की 
पृथ्वी पर सबको नाथ भयो जय कन्हैया लाल की 
विश्वास घर ठाकुर भयो जय कन्हैया लाल की ॥८॥
नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की 
हाथी घोड़ा पालकी ओ जय कन्हैया लाल की
घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥९॥
संत घर भजन भयो जय कन्हैया लाल की 
गुरुदेव घर राधिकावल्लभ भयो जय कन्हैया लाल की 
वृंदावन आज धाम भयो जय कन्हैया लाल की ॥१०॥ 
नन्द घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की 
हाथी घोड़ा पालकी ओ जय कन्हैया लाल की
घर-घर आज माखन चोर भयो जय कन्हैया लाल की ॥११॥

Friday 23 August 2019

मेरे चाँद हो तुम !


मेरे चाँद हो तुम !

सुनो क्यूँ कहती हूँ              
मैं तुम्हे अपना चाँद
जब तुम होते हो साथ मेरे
तब रात जैसे पूरनमासी 
की रात होती है 
वो रात चांदनी होती है 
अपने पुरे शबाब पर ठीक 
वैसे ही धड़कने चलती है 
मेरी अपनी तीब्रतम गति पर
जब तुम होते हो साथ मेरे
मन तो जैसे हिरण की तरह
कुलाचें मारने लगता है 
दिल को जैसे बरसो की 
मांगी कोई मुराद मिल 
जाती है  
मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ 
मेरी सांसों में मिलती 
तुम्हारी सांसें होती है 
होंठों की मुस्कुराहटें भी 
जैसे अतिक्रमण करने को 
आतुर हो हाँठो से फ़ैल कर 
गालों तक कब्ज़ा कर लेती है
इसलिए कहती हूँ मैं 
तुम्हे अपना चाँद !

क्या कुछ माँगा !


क्या कुछ माँगा !

मेरे खुश होने के लिए
बस एक तुम्हारा यूँ 
मेरे पास होना काफी 
है !  
तुम्हारा यूँ मेरे पास होना 
एहसास कई ख्वाहिशों 
के पूरा होने सा होता 
है ! 
तुम्हारा यूँ मेरे पास होना
अमावस में भी जैसे चाँद 
के दिख जाने सा एहसास 
देता है ! 
तुम्हारा यु मेरे पास होना
मेरे लबों को वजह दे जाता 
है !
यु बरबस ही मुस्कुराने का 
और तो और आँखों को बेवज़ह 
बोल उठने का मौका मिल 
जाता है !  
मेरे खुश होने के लिए मैंने
कहाँ कुछ ज्यादा माँगा है  
बस एक तुम्हारा यु मेरे 
पास होना ही तो मेरे खुश 
की सारी वजहें होती 
है !

Thursday 22 August 2019

कुछ कमी सी है !


कुछ कमी सी है !

उससे मिलने के बाद मुझे 
अब यकीं सा होने लगा है ;
कि कोई ना कोई कमी तो है 
मुझमे तभी तो आज भी जब 
मैं उससे मिलता हूँ ;  
तब भी वो कुछ उदास और 
कहीं खोई-खोई सी ही नज़र 
आती है ;
जो अक्सर कहते नहीं थकती
की जब तुम नहीं होते साथ मेरे 
तो तुझे मैं हर एक शै: में 
ढूंढती हूँ ;
पहरों सोचती हूँ मैं तुम्हारे बारे 
तुमसे मिलने की मैं आस 
लगाती हूँ ;
पर जब मैं उसके साथ होता हूँ  
तो वो कुछ उदास और खोई-खोई 
सी किन्यु नज़र आती है !

Wednesday 21 August 2019

अधूरे चांद की शाम।


अधूरे चांद की शाम।

आधे चाँद कि अधूरी शाम को ,
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ ; 

उस तुम्हारे अनछुए एहसास को अब 
मैं तुम्हे छूकर पूरा करना चाहती हूँ ;

जो मेरे अनकहे जज़्बात है उन अनकहे ,
जज्बात को कहकर पूरा करना चाहती हूँ ;

जिसकी हर पल बहुत याद आती है उसके 
बिना गुजरती अधूरी शाम को उसके साथ ,
गुजारकर अब पूरी करना चाहती हूँ ;

आज भी कही दूर बजती घंटियों कि आवाज़ , 
को अकेले सुनने का जो अधूरापन है ; 

उन घंटियों की आवाज़ को तुम्हारे ,
साथ बैठ कर सुनना चाहती हूँ ;

वो मेरे साथ चलती तुम्हारी अकेली परछाई को , 
तुम्हारा हाथ थामकर दोकली करना चाहती हूँ ;

आधे चाँद कि अधूरी शाम को ;
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ !

आलिंगन !


आलिंगन !

मैं जब होती हूँ 
तुम्हारे आलिंगन में 
तो ये पुरवाई हवा 
भी कंहा सिर्फ हवा 
रहती है !
वो तो जैसे मेरी 
साँस सी बन मेरी 
रगो में बहने लगती है !
मुझे तो जैसे हर एक 
गुलो में एक तुम्हारा ही 
चेहरा दिखने लगता है !
मन उड़ता है
कुछ यूँ ख़ुश हो कर  
जैसे इक्षाओं ने
पर लगा लिए हो !
और रूह तो मानो 
स्वक्छंद तितली का 
रूप धर उड़ने लगती है ! 
मैं जब होती हूँ  
तम्हारे आलिंगन में 
तो ये पुरवाई हवा 
भी कंहा सिर्फ हवा 
रहती है !

Monday 19 August 2019

ज़िद्दी और शैतान यादें !


ज़िद्दी और शैतान यादें !

जब भी याद मुझे तेरी आती है 
मेरी वफ़ा मुझ पर बड़ी मुस्कुराती है 
देख उसकी कटाक्ष भरी मुस्कान
दिल में मेरे बड़ा दर्द होता है      
फिर भी खुद पर फक्र होता है  
कि मैंने इतने सालों तक उन्हें 
मोटी-मोटी ज़ंजीरों में जकड़े रखा है  
ताकि तुम चैन से जी सको वंहा 
और रातों को सकूँ से सो सको वंहा 
लेकिन सुनो कल रात से ही मेरी 
वो यादें बिन बताए फरार है
ख्याल रखना अपना क्योंकि जैसे 
तुम्हारी यादें मुझे रात रात सोने नहीं देती है  
वैसे ही कंही मेरी यादें भी तुम्हे ना करे बैचैन 
मेरी यादें कुछ ज्यादा ज़िद्दी और शैतान है 
पर अगर करे वो तुम्हे ज्यादा परेशान तो 
उनके सामने ही तुम एक आवाज़ देना मुझे 
मैं फिर से पकड़कर उन्हें ला जकड़ूँगा 
उन्ही मोटी-मोटी ज़ंजीरों में यहाँ !

Sunday 18 August 2019

सुन गुजारिश मेरी !


सुन गुजारिश मेरी !

ऐ ज़िन्दगी सुन 
इतनी सी गुज़ारिश 
मेरी ! 
अब कहीं दूर ना जा 
कर दे रोशन इन सियाह 
रातों को मेरी !
और कर दे शीतल से 
ठन्डे मेरे तपते दिनों को 
तू मेरे ! 
फिर आकर तू पास 
मेरे ले ले अपने आगोश 
के घेरे में मुझे !  
और कर दे इस दुनिया 
से बिलकुल जुदा तू 
मुझे ! 
ऐ ज़िन्दगी मेरी
आ मेरी आँखों में 
बस जा और अपनी 
आँखों में बसा ले फिर 
से मुझे !
तू मुझसे दूर ना जाना 
इतनी सी गुज़ारिश है
मेरी !

Saturday 17 August 2019

अब तलक !


अब तलक !

जो साँस है मेरी ज़िन्दगी 
की अब भी बहती है अपनी 
ही गति से होकर बिल्कुल 
बेखबर अब तलक ; 
होकर बिलकुल बेखबर 
दर्द से मेरे अब तलक ;
और जो है बेअसर मेरी 
छुवन से है अब तलक ;
मगर जिन्दा रखे हुए  
है मुझे अब तलक ;
वो जो अपनी शीतल 
छुवन से मुझे आज़ाद  
करती है दुनिया की 
हर एक तपन से अब तलक ;
उसकी खामोश उपस्थिति 
ही करती है तर्क-वितर्क 
मुझ से अब तलक ;
जो साँस है मेरी ज़िन्दगी 
की अब भी बहती है अपनी 
ही गति से होकर बिल्कुल 
बेखबर अब तलक ! 

Thursday 15 August 2019

बहन !


बहन !

एक मां की कोख से
पैदा हुई लड़की का ही 
नाम नहीं है 
बहन !
उस रिश्‍ते का भी नाम है
जो एक पुरुष को मां के 
बाद पहली बार नारी का 
सामीप्‍य और स्‍नेह देता है
बहन !
कलाई पर राखी बांधने 
वाली एक लड़की का ही 
नाम नहीं है
बहन !
उस रिश्‍ते का भी नाम है
जो लाल पीले और हरे धागे 
को पावन बना देती है 
बहन !
मां पुरुष की जननी है
और पत्‍नी जीवन-संगिनी
पुरुष के नारी-संबंधों के
इन दो छोरों के बीच
पावन गंगा की तरह 
बहती नदी का नाम है
बहन !

Wednesday 14 August 2019

एक ख्याल !


इसमें कोई दो 
राय नहीं की 
इस दिल में 
वो अब भी
वैसे ही बसती है 
और रहती है वो 
मेरी यादो में भी 
पर अक्सर न
जाने क्यों
एक ख्याल से
ऊपर निचे हो 
जाती है इस 
दिल की धडकन 
कि कहीं अब
भी मैं उसके
किन्हीं ख्यालों में
तो नहीं !!

Tuesday 13 August 2019

मेरी शाख !


मेरी शाख !

मैं तो जब भी करती हूँ 
तुमसे बातें तब ही मैं 
अपने आप को पा लेती हूँ 
न दिखावा , न छलावा,
न बनावट ,  सजावट ,
मैं बस अपने मन की 
परतों को खोलती जाती हूँ
और मेरे साथ साथ उन छनो 
में तुम भी मंद-मंद मुस्कुराते हो
अपनी अँखिओं के कोरों से 
मेरी मस्ती मेरी चंचलता 
मेरा अल्हड़पन मेरा लड़कपन 
मेरा बचपना मेरा अपनापन व 
मेरा यौवन तुम थाम लेते हो 
अपने दोनों हांथो में तब  
मैं काँप जाती हूँ 
और नाज़ुक लता सी 
लिपट जाती हूँ मानकर 
तुम्हे अपनी शाख !

तुम्हारा नाम !


मैं कई बार 
ऐसा सोचता हूँ
कि आज तो 
मेरी रचना में 
मेरे हर्फों
यानी मेरे 
भावों की जगह
एक सिर्फ
तुम्हारा नाम 
लिख दूँ 
मेरी अभिव्यक्ति 
स्वयं हो जाएगी 
पूर्ण क्यों
क्या कहती हो 
तुम बोलो ?

Monday 12 August 2019

मेरी प्रेम कवितायेँ !


मेरी प्रेम  कवितायेँ !

अच्छा ये बताओ तुम 
कि तुम्हे अब भी मेरी 
प्रेम कविताओं मे तुम 
नज़र नहीं आती क्या 
अच्छा ये बताओ तुम 
क्या तुम्हे अब भी मेरे 
उन अनलिखे लिखे  
खाली पन्नो मे मेरे 
दिल की सदा सुनाई 
नहीं देती क्या 
जिसमे मैंने खुद को 
तुम्हारे हाथों हार कर 
स्वीकारा था की “हाँ  
मुझे मुहब्बत है एक 
सिर्फ तुमसे बोलो क्या 
इसलिए  तुम अब तक 
नहीं लांघ पायी हो उस  
घर की  दीवारी को बस 
इतना ही बता दो तुम ! 

Sunday 11 August 2019

पूर्णताः !


पूर्णताः !

पाना और पा 
लेने में जितना 
फर्क है उतना ही 
छूना और छू लेने 
में भी फर्क है
जैसे जीने और 
साथ जीने में है 
अभी अभी 
मुझे छूकर
गए हो जैसे तुम 
अब पूरी रात 
सिहरती रहूंगी मैं 
यु ही अकेले में 
ये फर्क जिस दिन 
तुम समझ जाओगे 
उस दिन मेरा प्रेम 
पूर्णताः को पा लेगा !

Saturday 10 August 2019

प्रेम पाना तुम्हारा !


प्रेम पाना तुम्हारा !

मैंने कभी नहीं चाहा
पाना प्रेम तुम्हारे सिवा  
किसी और का ;
मैंने तो चाहा भी और 
माँगा भी प्रेम एक सिर्फ  
तुम्हारा ही ; 
तुम मुझे प्रेम करो
और करे उतना ही 
प्रेम मुझे तुम्हारी 
संतति भी ;
मैं चाहता हूँ प्रेम देना 
भी सिर्फ एक तुम्हे और
तुम्हारी संतति को ही ;
तुमको प्रेम करने और
तुम्हारा प्रेम पाने के 
लिए लड़ रहा हूँ ; 
मैं आज भी इस ज़माने 
से और लड़ता रहूँगा 
कल भी क्योकि मैंने
कभी नहीं चाहा पाना 
किसी और का !

ख़्वाबों की तासीर !


ख़्वाबों की तासीर !

तेरे दीदार को 
तरसती है मेरी 
ये खुमार से भरी 
दोनों निश्छल आँखें 
रोज रात एक नया 
ख्वाब बुन लेती है 
जिनकी तासीर मेरे 
होंठों पर चासनी सी
धीरे-धीरे उतरती है 
फिर पूरी रात इश्क़
कतरा-कतरा कर
मेरी रूह में धीरे-धीरे 
उतरता रहता है !

Thursday 8 August 2019

शब्दों का बोझ !


शब्दों का बोझ !

सब कुछ तुमसे कह  
लेने के बाद सब कुछ 
अच्छा सा लगता है 
ये बारिश की बूँदें
पत्तियों की सरसराहट
ये महकी ठंडक
मिटटी की खुशबू
वो हलकी सी रौशनी
इस भीगते बदन पर
एक हलकी सी सिरहन
सब कितने अच्छे लगते हैं
समय रुक जाता है
एक नए प्रकाश में डूब
मन मंद-मंद मुस्काता है
पत्थरों से भारी उन शब्दों का
सदियों का कुछ बोझ
सा उतर जाता है
यूँ पट पर मेरे समक्ष खड़े तुम 
तुमसे सब कुछ कह लेने के बाद
सब कुछ अच्छा सा लगता है |

Wednesday 7 August 2019

जज्बाती दरिया !


जज्बाती दरिया !

एक दरिया मेरे 
महकते जज़्बातों का
वो उमड़ता है तब 
जब ज़िक्र तेरा मेरे 
कानों से गुज़रता हुआ 
सीधे जा पंहुचता है 
दिल की रसातल में 
इस जज़्बाती दरिया ने 
कभी तुझे निराश किया हो 
ये भी मुमकिन है 
क्योंकि तेरे लिए ही
दरिया का बहना अब 
बन गयी है इसकी नियति
पर इतना याद रखना
कंही सुख ना जाये 
ये जज़्बाती दरिया 
तेरी प्यास बुझाते बुझाते
रह जाए बस इसमें कुछ 
तुम्हारे फेंके पत्थर 
और तुम्हारे तन से 
निकली मटमैली धूल 
और कुछ ना बचे इसमें 
तुम्हारे कुछ अंश के सिवा !

Monday 5 August 2019

दिल की गुस्ताखी !


दिल की गुस्ताखी !

गुस्ताखी तो देखो दिल की मेरे चाहता है , 
रहना साथ उसके ही सदा ; 
जो मुझे सिर्फ अंधेरो में मिलना चाहती है !
वो चाहता है मुस्कान बनकर उसके ही 
होंठो पर रहना सदा ; 
जो हंसती है अपना दरवाज़ा बंद कर के सदा !
वो चाहता है रहना बनकर सुरीला संगीत , 
उसके ही कानो में सदा ;
जो प्रायः संगीत को आँखों से सुनती है !
वो चाहता है बनकर यौवन की मदहोश , 
खुश्बू उसके ही नथुनों में ;
जो अक्सर मेरे तन की खुश्बूं मिटाकर ; 
ही मिलती है सबसे सदा !
वो चाहता है बनकर रहना उसके कंठ में , 
कोयल की सुरीली आवाज़ बनकर ; 
जो अक्सर गुमसुम रहना पसंद करती है !
वो चाहता है रहना उसके हृदय में अप्रितम ,
चाहत बनकर जो चंद जिम्मेदारियों के अलावा ; 
कुछ और रखना ही नहीं चाहती अपने दिल में !
वो चाहता है बनकर सिन्दूर रहना उसी एक , 
अपनी प्रियतमा की मांग का ; 
जो अक्सर बिना सिन्दूर रहना पसंद करती है ! 
गुस्ताखी तो देखो दिल की मेरे चाहता है , 
रहना साथ उसके ही सदा ; 
जो मुझे सिर्फ अंधेरो में मिलना चाहती है !

Sunday 4 August 2019

हवन की समिधा !




तुम्हारे प्रेम क्षुधा से 
व्याकुल मेरा हृदय 
तृप्ति की चाह सिर्फ 
एक तुम से रखता है ;

मेरे मन में जबसे तुम 
हुई हो शामिल ये दिल 
जिद्द पर अड़ा है बनने 
को तुम्हारे हवन कुंड 
की समिधा है ;

जो हर एक आहुति के 
साथ धधक कर पूर्ण 
होना चाहता है सुनते 
ही स्वाहा ;

ताकि तुझमे मिलकर 
प्रेम की समिधा सा वो 
हो जाए पूर्ण और मेरे 
मन की व्याकुल क्षुधा 
को यज्ञ की पूर्णाहुति के 
साथ चीर शांति मिले !

क्यों इतने सारे क्यों है !


क्यों इतने सारे क्यों है  !

क्यों रात की ये कालिमा है
क्यों रौशनी से तपता दिन है 
क्यों आसमा ही ओझल है
क्यों हवा सूखी और मद्धम है 
क्यों लम्हे दर-दर बिखरे हैं
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब धुंधले है 
क्यों आँहे कराहें हो रही है 
क्यों दिन बीत ही नहीं रहे है 
क्यों एक नयी सुबह की ख़्वाहिश है
क्यों अब लेटे रहना भी मुश्किल है 
क्यों अकेले चलते रहना अब भारी है
क्यों भटके भटके से ये पदचिन्ह है 
क्यों हर एक पल आँखों से ओझल है
क्यों परछाइयाँ एक ही दुरी पर अडिग है 
क्यों अब सारी तस्वीरें चुभती सी हैं
क्यों सिमटे जीवन अब प्रतिदिन है  
क्यों सिर्फ एक तेरे साथ न होने से 
कितने कुछ पर क्यों लग रहा है ! 

Saturday 3 August 2019

गवाह बनना चाहता हूँ !


मैं चाहता हूँ बनना गवाह 
हमारे उन्मुक्त देह-संगम का 
मैं चाहता हूँ बनना गवाह 
उस परिवर्तन का जिसमे 
परिवर्तित होते देख सकूँ  
एक हिरणी को सिंघनी होते 
मैं चाहता हूँ बनना गवाह
प्रथम छुवन के स्पंदन का 
जो अभिव्यक्त कर सके 
तुम्हारी इंतज़ार करती 
धड़कनो की गति को 
मैं चाहता हूँ बनना गवाह
तुम्हारी तपती देह की से 
उठती उस तपन का जो 
पिघला दे लौह स्वरुप मेरे 
मैं को अपनी उस तपन से 
मैं चाहता हूँ बनना गवाह 
तुम्हारे होठों को थिरक थिरक 
कर यु बार बार लरजते देखने का 
मैं चाहता हु बनना गवाह
तुम्हारी उष्ण देह से निकलती 
कराहों को अपने कानो से सुनकर 
अपनी आँखों से देख सकूँ  
ठन्डे होते उसी तुम्हारे उष्ण 
देह को जिससे निकले तृप्ति 
का वो कम्पन जिसे पाकर 
तुम हो जाओ पूर्ण !

Friday 2 August 2019

कवितायेँ !


कवितायेँ !

कविताये समेटती है 
हमारे प्यार व तकरार के पल 
कविताये समेटती है 
पहली मुलाक़ात की ख़ुशी 
व जुदाई का दर्द भी 
कविताये समेटती है 
मोहब्ब्त के रंग और 
अभिव्यक्ति के ढंग भी 
साथ साथ समेटती है 
एक दूजे के द्वारा की 
गयी मनुहार व इकरार भी 
कविताये समेटती है 
कभी करार तो कभी 
इन्कार भी कभी स्वीकार 
तो कभी अंगीकार के पल भी 
कविताये समेटती है 
दिल ए बयान जिसमे 
रंग बदलती स्वांग रचती 
ख्वाब बुनती तो कभी 
चुनती है किरचें भी 
कविता का हर सफहा होता है 
दिल का आईना
हर लफ्ज़ होता है 
रूह की फरियाद !

Thursday 1 August 2019

सफर का हमसफ़र !


जब हो जाये किसी को प्रेम अपने , 
ही प्रतिबिम्ब से डरने वाली से ;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;

जब हो जाये किसी को प्रेम अपनी ,
ही सांसों की तेज़ गति से डरने वाली से;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;

जब हो जाये किसी को प्रेम अपनी , 
ही पदचाप की आवाज़ से डरने वाली से ;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;

जब हो जाये किसी को प्रेम अपनी ,  
ही दहलीज़ को पार करने से डरने वाली से ;

तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;

और जब दर्द किसी प्रेम के सफर , 
का हमसफ़र हो बन जाता है ;

तो आँसुओं को देनी पड़ जाती है इज़ाज़त , 
आँखों के काजल को बहा ले जाने की ! 

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !