Saturday, 17 August 2019

अब तलक !


अब तलक !

जो साँस है मेरी ज़िन्दगी 
की अब भी बहती है अपनी 
ही गति से होकर बिल्कुल 
बेखबर अब तलक ; 
होकर बिलकुल बेखबर 
दर्द से मेरे अब तलक ;
और जो है बेअसर मेरी 
छुवन से है अब तलक ;
मगर जिन्दा रखे हुए  
है मुझे अब तलक ;
वो जो अपनी शीतल 
छुवन से मुझे आज़ाद  
करती है दुनिया की 
हर एक तपन से अब तलक ;
उसकी खामोश उपस्थिति 
ही करती है तर्क-वितर्क 
मुझ से अब तलक ;
जो साँस है मेरी ज़िन्दगी 
की अब भी बहती है अपनी 
ही गति से होकर बिल्कुल 
बेखबर अब तलक ! 

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