Wednesday, 21 August 2019

अधूरे चांद की शाम।


अधूरे चांद की शाम।

आधे चाँद कि अधूरी शाम को ,
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ ; 

उस तुम्हारे अनछुए एहसास को अब 
मैं तुम्हे छूकर पूरा करना चाहती हूँ ;

जो मेरे अनकहे जज़्बात है उन अनकहे ,
जज्बात को कहकर पूरा करना चाहती हूँ ;

जिसकी हर पल बहुत याद आती है उसके 
बिना गुजरती अधूरी शाम को उसके साथ ,
गुजारकर अब पूरी करना चाहती हूँ ;

आज भी कही दूर बजती घंटियों कि आवाज़ , 
को अकेले सुनने का जो अधूरापन है ; 

उन घंटियों की आवाज़ को तुम्हारे ,
साथ बैठ कर सुनना चाहती हूँ ;

वो मेरे साथ चलती तुम्हारी अकेली परछाई को , 
तुम्हारा हाथ थामकर दोकली करना चाहती हूँ ;

आधे चाँद कि अधूरी शाम को ;
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...