Wednesday, 21 August 2019

आलिंगन !


आलिंगन !

मैं जब होती हूँ 
तुम्हारे आलिंगन में 
तो ये पुरवाई हवा 
भी कंहा सिर्फ हवा 
रहती है !
वो तो जैसे मेरी 
साँस सी बन मेरी 
रगो में बहने लगती है !
मुझे तो जैसे हर एक 
गुलो में एक तुम्हारा ही 
चेहरा दिखने लगता है !
मन उड़ता है
कुछ यूँ ख़ुश हो कर  
जैसे इक्षाओं ने
पर लगा लिए हो !
और रूह तो मानो 
स्वक्छंद तितली का 
रूप धर उड़ने लगती है ! 
मैं जब होती हूँ  
तम्हारे आलिंगन में 
तो ये पुरवाई हवा 
भी कंहा सिर्फ हवा 
रहती है !

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