Monday, 26 June 2017

तुम्हारी आँखों के ख्वाब...


सुनो आओ...
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी
तुम्हारा खोया हुआ,
विश्वास...
कुछ देर बैठो...
मेरे हाथों को थाम कर,
मैं लौटा दूंगी तुम्हे
जीने का एहसास...
कुछ देर देखो...
तुम मेरी आँखों में,
मैं लौटा दूंगी...
तुम्हारी आँखों के ख्वाब...
कुछ देर सुन लो,
तुम इन धड़कनो की आवाज़,
तुम्हे मिल जायँगे,
सवालो के जवाब
पर मैं तो बैठा हु
तुम्हारे हांथो के थामे
पिछले पांच सालो से
देखे हुए तुम्हारी ही
आँखों में जंहा रखे थे
मैंने अपने ख्वाब जो
अब तक है अधूरे 


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