Monday, 5 June 2017

तुम बहुत याद आती हो मुझे 

तुम्हे भुलाने की 
बहुत सी वजहें है
और थी भी मेरे पास 
पर जब भी पहले 
प्यार की बात होती है 
तुम बहुत याद आती हो मुझे 
यु तो तुम्हारा नाम भी 
अपनी जुबा पर ना 
लाने की बहुत सी वजहें 
थी मेरे पास पर जब भी 
तुम पर लिखी कविता 
गुनगुनाता हु मैं अकेले में   
तुम बहुत याद आती हो मुझे 
तुम्हारे वज़ूद को मिटाने 
की बहुत सी वजहें थी 
मेरे पास पर जब जब 
निहारा खुद को आईने में 
मेरी ही आँखों में छाया 
तुम्हारा वज़ूद नज़र आया 
तब तुम बहुत याद आती हो मुझे 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...