Saturday, 24 June 2017

रात को इंतज़ार था


चाँद निकला
और
छुप गया था
बादलों में,
ख्वाहिशों से घिरी
रात को
इंतज़ार था
सहर का,
महताब
ना सही
आफताब
तो भर देगा
उजालों की
सौगातों से
बेवक्त धुंधली हुई
जिंदगी को..

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