Wednesday, 21 June 2017

जड़ों की जरूरत

मैं जानना चाहता हूँ 
तुम्हें जैसे
पृथ्वी जानती है 
सृष्टि का ऋतुचक्र
ऋतुचक्र जानते हैं 
अपने फल,फूल,फसल को 
मैं जानना चाहता हूँ 
तुम्हें जैसे
वर्षा पहचानती है 
अपने कीट-पतंग
मैं जानना चाहता हूँ 
तुम्हें जैसे
फुनगी जानती है 
जड़ों की जरूरत
और जड़ें पहचानती हैं 
फुनगी की खुराक

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...