Monday, 19 June 2017

मैं तुम्हारे साथ हूँ !

ख़ामोशी को खामोश 
समझना 
भूल ही होती है अक्सर । 
कितनी हलचल 
अनगिनत ज्वार भाटे
समाये होते है।
आँखों में समाई नमी
जाने कितने समंदर 
छिपाए होती हैं।
नहीं टूटते यह समंदर
ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई
कंधे को छू कर ना कहे
कि मैं तुम्हारे साथ हूँ !
हर पल हर 
परिस्थिति में 
समझी तुम

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