Friday, 6 September 2019

नैनों की रज्ज !


नैनों की रज्ज !

नैनो की गीली-गीली
रज्ज में जो बोये है 
वो कच्चे कच्चे सपने है
कण्ठ की मधुर मधुर
धुन से जो गुनगुनाये है
वो मेरे प्रेम के गीत है 
अपने हृदय के नर्म नर्म
आँगन में जो सजाये है 
वो खुशनुमा लम्हे है
इन सबको मैं टूटता  
बिखरता और करहाता   
बैचैन सा इन्हे सींचने 
सँवारने और सहेजने 
की कोशिश कर रहा हूँ  
जब इनमे सुगंध फूटे
तो तुम आना मैं ये 
सुगंध तुझमे भरना 
चाहता हूँ !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !