Monday, 23 September 2019

क्या संभव है !


क्या संभव है !

कहाँ मुमकिन है 
अभिव्यक्त कर पाना  
हु-ब-हु प्रेम को ;
क्या संभव है ?
इसको अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे 
शब्दों में समेट पाना ;
क्या संभव है ?
इसको अपनी मातृ  
भाषा में पूरी तरह  
व्यक्त कर पाना ;
क्या संभव है ?
इसकी अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना ;
क्या संभव है ? 
चाहत के इस विस्त्रत 
आकाश को अपने आखरों 
में बाँध पाना ;
नहीं शायद इसलिए 
तुम समझ ही नहीं पायी
थाह मेरे प्रेम की अब तक ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !