Friday, 27 September 2019

ए पुरुष !

ए पुरुष ,
तू क्यूं 
दुविधा में हैं
देख यौवन 
मुझ में लय है
देख सौन्दर्य 
मुझ में लीन है
देख सृजन 
मुझ में रत है
देख तू भी 
तो मेरी ही
आकांक्षाओं मेंं 
विलीन है
देख तू ही तो 
मेरी कोख में 
प्रतिस्थापित है।

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !