Saturday, 21 September 2019

आँखों की जुबान !


आँखों की जुबान !

एक मुद्दत से
होठों के मुहाने 
पर पलते शब्द 
करते रहे तेरे आने 
इंतज़ार फिर अचानक
तुम आ गयी इतने करीब
की मुद्दत से होठों के मुहाने 
पलते शब्द फँस कर रह गये 
दोनों होठों के बीच लेकिन 
वो मायने जिन्हे शब्दों ने 
नये अर्थ में ढाला था 
आँखों की उदासी ने 
बिना शोर के ही 
चुपचाप कह डाला 
सुना था आँखों की 
भी ज़ुबान होती है
पर आज देख भी 
लिया मैंने !        

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !