Sunday, 15 September 2019

तन्हा रातें !


तन्हा रातें !

कुछ ही दिनों में फिर 
दिन छोटे और रातें 
लम्बी होने लगेंगी ; 
फिर यादें तुम्हारी मुझे
इन लम्बी रातों में अकेले
जागने को मज़बूर करेंगी ;
फिर ये जाग मुझे  
तुम पर लिखी अपनी 
प्रेम कविता गुनगुनाने 
को मज़बूर करेगी ;
फिर वो गुनगुनाहट ही  
मेरे गीत बनेंगे जिन्हे मैं 
माचिश की तीली की तरह 
इस्तेमाल करूँगा ;
अँधेरी रातों में अकेले 
जागने पर वो मेरी 
मदद करेगी ; 
क्यूँकि मुझे पता है 
ये लम्बी और तन्हा 
रातें किसी का साथ
मांगने को मज़बूर  
करेंगी ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !