Tuesday, 3 September 2019

हरतालिका तीज का चाँद !


हरतालिका तीज का चाँद !
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सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की आवाज होना 
चाहता हूँ ! 
ताकि जब ये मौसम का रूप आलाप ले 
रहा हो !
तब मैं तुम्हारे सुरीले कंठ से सुर बनकर अपने प्रेम का इज़हार 
कर सकू ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो सात रंग वाला इन्द्रधनुष होना 
चाहता हूँ !
ताकी तुम जब भी कोई रंग खुद पर डालो तो वो 
रंग तुम्हे मेरे ही इंद्रधनुष का एक सबसे खुशनुमा रंग 
लगा नज़र आये ! 
सुनो मैं आज तुम्हारे हुस्न सा हरतालिका तीज का वो चाँद होना 
चाहता हूँ ! 
ताकि तुमसे दूर रहकर भी मैं तुम्हारे सबसे कठोर 
व्रत का पात्र बन बिधाता के द्वारा लिखे अपने उस भाग्य 
पर इठला सकू ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो चमकता सितारा होना चाहता 
हूँ !
जो तुम्हारे असीम सौंदर्य में जुड़ कर उसकी झिलमिलाहट 
में चार चाँद लगा दे ! 
सुनो मै अब तुम्हारे हुस्न की वो रक्ताम्भिक 
लाली बनना चाहता हूँ !
जिसको लगाकर तुम्हारे होंठ अग्नि की पूज्य ज्वाला 
समान धधक उठे ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप की वो छाया 
बनना चाहता हूँ ! 
जिसकी तलाश में तुम दौड़ पड़ो तब जब 
सूरज की तेज़ धूप तुम्हे तपाने की खातिर तुम्हारे 
सर पर मंडराने लगे ! 
और तब तुम सिर्फ मेरी तलाश में दौड़ कर 
मेरी ही छांव में आ बैठो ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की वो धूप भी 
बनना चाहता हूँ !
जिसमे तुम अपने भीगे हुए मन को सुखाने 
का सोचो तो बस एक मेरे ही सानिध्य को इधर उधर 
तलाशो ! 
सुनो अंततः मैं तुम्हारे रूप का वो एकत्व बनना
चाहता हूँ ! 
जिसके सामर्थ और शक्ति से मेरा और तुम्हारा एकत्व 
गूँथा जाए !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !