हरतालिका तीज का चाँद !
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की आवाज होना
चाहता हूँ !
ताकि जब ये मौसम का रूप आलाप ले
रहा हो !
तब मैं तुम्हारे सुरीले कंठ से सुर बनकर अपने प्रेम का इज़हार
कर सकू !
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो सात रंग वाला इन्द्रधनुष होना
चाहता हूँ !
ताकी तुम जब भी कोई रंग खुद पर डालो तो वो
रंग तुम्हे मेरे ही इंद्रधनुष का एक सबसे खुशनुमा रंग
लगा नज़र आये !
सुनो मैं आज तुम्हारे हुस्न सा हरतालिका तीज का वो चाँद होना
चाहता हूँ !
ताकि तुमसे दूर रहकर भी मैं तुम्हारे सबसे कठोर
व्रत का पात्र बन बिधाता के द्वारा लिखे अपने उस भाग्य
पर इठला सकू !
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो चमकता सितारा होना चाहता
हूँ !
जो तुम्हारे असीम सौंदर्य में जुड़ कर उसकी झिलमिलाहट
में चार चाँद लगा दे !
सुनो मै अब तुम्हारे हुस्न की वो रक्ताम्भिक
लाली बनना चाहता हूँ !
जिसको लगाकर तुम्हारे होंठ अग्नि की पूज्य ज्वाला
समान धधक उठे !
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप की वो छाया
बनना चाहता हूँ !
जिसकी तलाश में तुम दौड़ पड़ो तब जब
सूरज की तेज़ धूप तुम्हे तपाने की खातिर तुम्हारे
सर पर मंडराने लगे !
और तब तुम सिर्फ मेरी तलाश में दौड़ कर
मेरी ही छांव में आ बैठो !
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की वो धूप भी
बनना चाहता हूँ !
जिसमे तुम अपने भीगे हुए मन को सुखाने
का सोचो तो बस एक मेरे ही सानिध्य को इधर उधर
तलाशो !
सुनो अंततः मैं तुम्हारे रूप का वो एकत्व बनना
चाहता हूँ !
जिसके सामर्थ और शक्ति से मेरा और तुम्हारा एकत्व
गूँथा जाए !
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सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की आवाज होना
चाहता हूँ !
ताकि जब ये मौसम का रूप आलाप ले
रहा हो !
तब मैं तुम्हारे सुरीले कंठ से सुर बनकर अपने प्रेम का इज़हार
कर सकू !
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो सात रंग वाला इन्द्रधनुष होना
चाहता हूँ !
ताकी तुम जब भी कोई रंग खुद पर डालो तो वो
रंग तुम्हे मेरे ही इंद्रधनुष का एक सबसे खुशनुमा रंग
लगा नज़र आये !
सुनो मैं आज तुम्हारे हुस्न सा हरतालिका तीज का वो चाँद होना
चाहता हूँ !
ताकि तुमसे दूर रहकर भी मैं तुम्हारे सबसे कठोर
व्रत का पात्र बन बिधाता के द्वारा लिखे अपने उस भाग्य
पर इठला सकू !
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो चमकता सितारा होना चाहता
हूँ !
जो तुम्हारे असीम सौंदर्य में जुड़ कर उसकी झिलमिलाहट
में चार चाँद लगा दे !
सुनो मै अब तुम्हारे हुस्न की वो रक्ताम्भिक
लाली बनना चाहता हूँ !
जिसको लगाकर तुम्हारे होंठ अग्नि की पूज्य ज्वाला
समान धधक उठे !
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप की वो छाया
बनना चाहता हूँ !
जिसकी तलाश में तुम दौड़ पड़ो तब जब
सूरज की तेज़ धूप तुम्हे तपाने की खातिर तुम्हारे
सर पर मंडराने लगे !
और तब तुम सिर्फ मेरी तलाश में दौड़ कर
मेरी ही छांव में आ बैठो !
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की वो धूप भी
बनना चाहता हूँ !
जिसमे तुम अपने भीगे हुए मन को सुखाने
का सोचो तो बस एक मेरे ही सानिध्य को इधर उधर
तलाशो !
सुनो अंततः मैं तुम्हारे रूप का वो एकत्व बनना
चाहता हूँ !
जिसके सामर्थ और शक्ति से मेरा और तुम्हारा एकत्व
गूँथा जाए !
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