Wednesday, 25 September 2019

मरुस्थल !


जब प्रेम प्रीत से मिलता है ,
तो विश्वास को बल मिलता है ;

ईश कण-कण में रहता है ,
पर आँखों को क्यों नहीं मिलता है ;   

दुविधाओं के समंदर में उतर ,
दुविधाओं का हल मिलता है ;

जाना है सब कुछ जिसने ,
फिर वो पागल लगता है ;

जन्म जन्म के प्यासों को ,
केवल मरुस्थल ही मिलता है !   

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !