Monday, 30 September 2019

कोमलांगी की कठोरता !


कोमलांगी की कठोरता !

कोमलांगी की कोमलता 
तो उसकी चुप्पी में है ; 
जिसे हम ना नहीं समझ 
सकते है ;
इसे कुछ और भी नहीं 
कह सकते है ;
व्यर्थ ही अपनी उद्दाम 
इक्षाओं को उसके कांधों 
पर नहीं डाल सकते है ;  
अपने पहले प्यार की 
खूबियों पर यकीन दिलाने 
का तो कतई स्वांग नहीं 
रच सकते है ; 
वो इन सब के अर्थ भली 
भांति जानती है ;  
वो अच्छी तरह तुम्हारी  
निरंतर ताकती निगाहों 
का मतलब भी बखूबी 
पहचानती है ;
कोमलांगी की कठोरता  
तो उसकी ना में है ;
जिसे अब तुम कभी
नजअंदाज़ नहीं कर 
सकते हो ! 

Sunday, 29 September 2019

उष्णता !


उष्णता !

जब तुम नहीं होते 
पास मेरे 
तब ये ठंडी हवा भी 
पास मेरे 
आकर बिलखती है 
पास मेरे 
जो दीवार धुप में तपकर 
जल रही होती है 
वो ठंडी हवा उस दीवार 
से टकराकर 
उष्णता से भर लौट आती है 
पास मेरे  
जब तुम नहीं होते 
पास मेरे 
प्रकृति की नैसर्गिक 
क्रियाएँ भी बदल  
जाती है आकर के 
पास मेरे !

Saturday, 28 September 2019

पथप्रदर्शक !


पथप्रदर्शक !

तुम से मैं
और मैं से हम
होना चाहता हूँ
हम से फिर 
अपने अहम की 
सारी सिलवटें
मिटाना चाहता हूँ
और फिर मैं 
मील का पत्थर
बनकर प्रेम की राह में 
बस खड़ा हो कर इस राह से 
गुजरने वालों का पथप्रदर्शक 
बनना चाहता हूँ !

Friday, 27 September 2019

ए पुरुष !

ए पुरुष ,
तू क्यूं 
दुविधा में हैं
देख यौवन 
मुझ में लय है
देख सौन्दर्य 
मुझ में लीन है
देख सृजन 
मुझ में रत है
देख तू भी 
तो मेरी ही
आकांक्षाओं मेंं 
विलीन है
देख तू ही तो 
मेरी कोख में 
प्रतिस्थापित है।

Thursday, 26 September 2019

जख्म है अंदर !


जख्म है अंदर !

जख्म कई 
छुपा रखे है 
लिहाफ के अंदर 
अश्क़ कई 
बसा रखे है 
आँखों के अंदर 
नज़रें कई 
टकराती है 
आज भी इस 
भीड़ के अंदर 
मिलाना किसी 
ओर से वो नज़रें 
जो मिली थी तुमसे
रूह के अंदर 
ऐसी तबियत 
हमारी नहीं है 
उतर कर कहता है 
ये दिल तुम्हारे 
दिल के अंदर !  

Wednesday, 25 September 2019

मरुस्थल !


जब प्रेम प्रीत से मिलता है ,
तो विश्वास को बल मिलता है ;

ईश कण-कण में रहता है ,
पर आँखों को क्यों नहीं मिलता है ;   

दुविधाओं के समंदर में उतर ,
दुविधाओं का हल मिलता है ;

जाना है सब कुछ जिसने ,
फिर वो पागल लगता है ;

जन्म जन्म के प्यासों को ,
केवल मरुस्थल ही मिलता है !   

Monday, 23 September 2019

क्या संभव है !


क्या संभव है !

कहाँ मुमकिन है 
अभिव्यक्त कर पाना  
हु-ब-हु प्रेम को ;
क्या संभव है ?
इसको अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे 
शब्दों में समेट पाना ;
क्या संभव है ?
इसको अपनी मातृ  
भाषा में पूरी तरह  
व्यक्त कर पाना ;
क्या संभव है ?
इसकी अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना ;
क्या संभव है ? 
चाहत के इस विस्त्रत 
आकाश को अपने आखरों 
में बाँध पाना ;
नहीं शायद इसलिए 
तुम समझ ही नहीं पायी
थाह मेरे प्रेम की अब तक ! 

Sunday, 22 September 2019

ओस की बूंद !


ओस की बूंद !

मैं अपनी 
हथेली पर  
धूप की मखमली 
चादर लपेटे 
तेरे आने का 
इंतज़ार कर रहा हूँ 
नर्म ओस की बूंदों में 
अपना एहसास समेटे 
तुम चुपके से 
मेरे पास 
चली आना 
अपनी साँसों में 
भर लूँगा 
धुँआ धुँआ होते  
तुम्हारे एहसास को मैं !     

Saturday, 21 September 2019

आँखों की जुबान !


आँखों की जुबान !

एक मुद्दत से
होठों के मुहाने 
पर पलते शब्द 
करते रहे तेरे आने 
इंतज़ार फिर अचानक
तुम आ गयी इतने करीब
की मुद्दत से होठों के मुहाने 
पलते शब्द फँस कर रह गये 
दोनों होठों के बीच लेकिन 
वो मायने जिन्हे शब्दों ने 
नये अर्थ में ढाला था 
आँखों की उदासी ने 
बिना शोर के ही 
चुपचाप कह डाला 
सुना था आँखों की 
भी ज़ुबान होती है
पर आज देख भी 
लिया मैंने !        

Friday, 20 September 2019

दर्द की गिरहें !


दर्द की गिरहें !

क्यों डरती हो 
तुम प्यार से
ये भी भला कोई 
डरने की चीज़ है
प्यार तो वो 
कोमल एहसास है
जो किसी को भी 
नसीब से मिलता है 
फिर क्यों नहीं कह 
देती तुम इस जहाँ को 
कि तुम प्यार में हो 
शायद तुम डरती हो 
अपने आप से की 
कहीं कोई तुमसे 
तुम्हीं को ना छीन ले
प्यार से तुम्हे अपनाकर
तुम्हारे दर्द कि सारी 
गिरह ना खोल दे है ना ?

Thursday, 19 September 2019

जंग जारी है !


जंग जारी है !
जंग अगर जारी है
तो समझो जिंदा है
वरना यहां तो कई
लाशें भी इंसानी रूप  
में फिर रही है
हां में हां मिला कर जो
आज अपना अपना 
जमीर बेच रहे हैं
ना समझना की वो
अच्छी किस्मत वाले है
कल आने वाली 
उनकी भी बारी है
मन पर कोई बोझ 
लेकर अगर नहीं जाना है  
तो याद रखना है 
ज़िन्दगी जंग है 
और इस जंग को 
अंतिम साँस तक 
जारी रखना है 
जंग अगर जारी है
तो समझो जिंदा है
वरना यहां तो कई
लाशें भी इंसानी रूप  
में फिर रही है

Tuesday, 17 September 2019

स्तुतियाँ लिखी है !


स्तुतियाँ लिखी है !

मेरी कवितायेँ 
वो स्तुतियाँ है 
जो मैंने ईश्वर 
के लिए लिखी है  
पर उन पर नाम 
मैंने अपनी प्रेयषी 
का ही लिख रखा है 
क्यूंकि मेरा ऐसा 
मानना है कि 
इस कलयुग 
में स्वयं ईश्वर 
तो आते नहीं है 
पर उनके स्वरूप  
में मैं जरूर पा 
सकता हूँ मेरी 
प्रेयषी को इसलिए 
मैंने अपनी सारी 
स्तुतियों पर उसी 
का नाम लिख 
रखा है !

Sunday, 15 September 2019

तन्हा रातें !


तन्हा रातें !

कुछ ही दिनों में फिर 
दिन छोटे और रातें 
लम्बी होने लगेंगी ; 
फिर यादें तुम्हारी मुझे
इन लम्बी रातों में अकेले
जागने को मज़बूर करेंगी ;
फिर ये जाग मुझे  
तुम पर लिखी अपनी 
प्रेम कविता गुनगुनाने 
को मज़बूर करेगी ;
फिर वो गुनगुनाहट ही  
मेरे गीत बनेंगे जिन्हे मैं 
माचिश की तीली की तरह 
इस्तेमाल करूँगा ;
अँधेरी रातों में अकेले 
जागने पर वो मेरी 
मदद करेगी ; 
क्यूँकि मुझे पता है 
ये लम्बी और तन्हा 
रातें किसी का साथ
मांगने को मज़बूर  
करेंगी ! 

Saturday, 14 September 2019

तेरी ऑंखें !


तेरी ऑंखें !

काजल को 
लुभाती वो 
तेरी ऑंखें ; 
मेरे अक्स 
को दिखाती वो  
तेरी ऑंखें ;
मेरी रूह को 
उधेड़ती वो 
तेरी आँखें ;
मुझ को मेरे 
हम से जो 
है मिलवाती वो ;
तेरी ऑंखें !

Friday, 13 September 2019

अद्भुत प्रेम !


अद्भुत प्रेम !

हां इन्हीं दहकते 
अंगारों के बीच 
मिलता है आश्रय
प्रेम को जैसे 
इसका अर्थ 
भटकता है 
निर्जन वनों में
ठीक वैसे ही 
प्रेम आता है
और ठहर जाता है 
अद्भुत-सा हमारी 
कल्पनाओं से लम्बा
और ऊंचा भी और 
ढूंढ ही लेता है
अपना आश्रय
इन्हीं दहकते 
अंगारो के
बीच यहीं ! 

Thursday, 12 September 2019

नन्ही-नन्ही बूंदें !


जिस तरह चिलचिलाती
दोपहरी में बारिश की कुछ 
नन्ही-नन्ही बूंदें भी 
उस चिलचिलाती दोपहर 
को भी बना देती है 
खुशगवार मौसम  
ठीक उसी तरह प्रेमी 
को भी प्रेमिका अपने 
साथ से कर देती है 
खुशगवार और फिर 
वही भींगी-भींगी सी   
दोपहरी लौटा लाती है 
वह उष्मा जो उन दोनों 
का प्रेम कई बार खो देता है 
अपनी नादानियों से !

Wednesday, 11 September 2019

तकदीर की रेखा !


तकदीर की रेखा !

तेरी सांसो ने 
मेरे कहे एक 
एक शब्दों में जैसे 
ऊष्मा भर दी तभी 
तो वो मेरे सारे शब्द 
जैसे अमर हो गए
पाकर तेरी सांसो 
की ऊष्मा को 
वो ही तो शब्द थे 
जो मुझे सबसे प्रिय थे 
तब से मैं घिस रहा हूँ 
उन सब्दो को अपनी
हथेली पर ताकि  
वो मेरी हथेली में 
तकदीर की एक 
नई रेखा बनकर 
उभर आये !

Tuesday, 10 September 2019

प्रेम है क्या ?


प्रेम है क्या ?

मैंने देखा उसका चेहरा 
गुलाब के फूल में...
मगर मैं कुछ नहीं समझा  
मैंने सुनी उसकी आवाज़ 
कोयल की कूक में...
फिर भी मैं कुछ नहीं समझा  
मैंने झलक देखी उसकी , 
हिरन की चाल में, 
बसंत के रंगों में 
रहमान के संगीत में 
फिर भी मैं कुछ नहीं समझा 
मैंने पैगम्बरों से जानने 
की कोशिश की इस महसूसियत  
के बारे और पाया कि वो भी 
मुझसे अधिक कुछ नहीं जानते
इस प्रेम के बारे में क्योंकि  
प्रेम समझने की वस्तु नहीं है ; 
प्रेम सिर्फ महसूसने की विधा है ! 

Saturday, 7 September 2019

तुम्हारी अभिलाषा !


तुम्हारी अभिलाषा !

हाँ मुझे है
तुम्हारी अभिलाषा,
क्योंकि तुम्हारा
साथ कभी भी
मुझे भटकने
नहीं देता...
तुम्हारा कोमल और 
नरम सा स्पर्श
मुझे कोई तकलीफ
नहीं देता...
तुम्हारा मेरे
जीवन में होना
मुझे कभी शुन्य
नहीं होने देता...
शायद ये तुम्हारी
अभिलाषा ही है,
जो मेरे जीवन को 
संपूर्ण बनाती है !

Friday, 6 September 2019

नैनों की रज्ज !


नैनों की रज्ज !

नैनो की गीली-गीली
रज्ज में जो बोये है 
वो कच्चे कच्चे सपने है
कण्ठ की मधुर मधुर
धुन से जो गुनगुनाये है
वो मेरे प्रेम के गीत है 
अपने हृदय के नर्म नर्म
आँगन में जो सजाये है 
वो खुशनुमा लम्हे है
इन सबको मैं टूटता  
बिखरता और करहाता   
बैचैन सा इन्हे सींचने 
सँवारने और सहेजने 
की कोशिश कर रहा हूँ  
जब इनमे सुगंध फूटे
तो तुम आना मैं ये 
सुगंध तुझमे भरना 
चाहता हूँ !

Thursday, 5 September 2019

तुम्हारा मेरे साथ होना !


तुम्हारा मेरे साथ होना !
सुनो ;
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए सच मायने में 
होता है जीवन को जीना !
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए जैसे रेगिस्तान 
में खाक छानते हुए 
को एक पानी से भरा 
घड़ा पीने को दे देना !
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए जैसे माइनस
बीस डिग्री में अचानक
से अलाव की तपिश 
मिल जाना ! 
तुम्हारा मेरे साथ होना
मेरे लिए जैसे बरसो की 
पूजा के बाद ईश्वर का
मेरे सामने प्रकट होना !
और उनका मुझे पूछना 
मांगो वत्स और मेरा 
उनसे सातों जन्मो का
तुम्हारा साथ मांग लेना !

Wednesday, 4 September 2019

मैं वचन देता हूँ तुम्हे !


मैं वचन देता हूँ तुम्हे !

गर तुम करो वादा मुझसे 
मुझ सा ही प्रेम करने का
मैं वचन देता हूँ तुम्हे इस 
धुप और छाया की आंख 
मिचौनी को एक दूजे में 
घोलने की ! 
गर तुम करो वादा मुझसे 
मेरी तन्हाई को आबाद 
करने की तो मैं वचन देता हूँ  
तुम्हे तुम्हारे घर के आंगन में 
साथ साथ खेलेंगे ख्वाहिश 
और ख्वाब !
गर तुम करो वादा मुझसे 
मेरा दिल कभी ना दुखाने 
का तो मैं वचन देता हूँ तुम्हे 
वो जहां देने की जंहा दर्द
और हंसी एक दूजे पर मरते हो !
गर तुम करो वादा मुझसे 
मेरा प्रेम अमर कर देने का 
मैं वचन देता हूँ तुम्हे ले चलूँगा 
तुम्हे तुम्हारा हाथ थाम कर 
वंहा जंहा अपने और पराये 
एक साथ मिलकर एक दूजे 
का त्यौहार मनाते हों ।

Tuesday, 3 September 2019

हरतालिका तीज का चाँद !


हरतालिका तीज का चाँद !
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की आवाज होना 
चाहता हूँ ! 
ताकि जब ये मौसम का रूप आलाप ले 
रहा हो !
तब मैं तुम्हारे सुरीले कंठ से सुर बनकर अपने प्रेम का इज़हार 
कर सकू ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो सात रंग वाला इन्द्रधनुष होना 
चाहता हूँ !
ताकी तुम जब भी कोई रंग खुद पर डालो तो वो 
रंग तुम्हे मेरे ही इंद्रधनुष का एक सबसे खुशनुमा रंग 
लगा नज़र आये ! 
सुनो मैं आज तुम्हारे हुस्न सा हरतालिका तीज का वो चाँद होना 
चाहता हूँ ! 
ताकि तुमसे दूर रहकर भी मैं तुम्हारे सबसे कठोर 
व्रत का पात्र बन बिधाता के द्वारा लिखे अपने उस भाग्य 
पर इठला सकू ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप का वो चमकता सितारा होना चाहता 
हूँ !
जो तुम्हारे असीम सौंदर्य में जुड़ कर उसकी झिलमिलाहट 
में चार चाँद लगा दे ! 
सुनो मै अब तुम्हारे हुस्न की वो रक्ताम्भिक 
लाली बनना चाहता हूँ !
जिसको लगाकर तुम्हारे होंठ अग्नि की पूज्य ज्वाला 
समान धधक उठे ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे रूप की वो छाया 
बनना चाहता हूँ ! 
जिसकी तलाश में तुम दौड़ पड़ो तब जब 
सूरज की तेज़ धूप तुम्हे तपाने की खातिर तुम्हारे 
सर पर मंडराने लगे ! 
और तब तुम सिर्फ मेरी तलाश में दौड़ कर 
मेरी ही छांव में आ बैठो ! 
सुनो मैं अब तुम्हारे हुस्न की वो धूप भी 
बनना चाहता हूँ !
जिसमे तुम अपने भीगे हुए मन को सुखाने 
का सोचो तो बस एक मेरे ही सानिध्य को इधर उधर 
तलाशो ! 
सुनो अंततः मैं तुम्हारे रूप का वो एकत्व बनना
चाहता हूँ ! 
जिसके सामर्थ और शक्ति से मेरा और तुम्हारा एकत्व 
गूँथा जाए !

Monday, 2 September 2019

उत्तकंठ अभिलाषा !


उत्तकंठ अभिलाषा !

तुम गूंजने लगती हो 
इस देह व आत्मा रूपी 
मेरे समेत अस्तित्व के 
ब्रह्माण्ड में ! 
बिलकुल मंदिर में बजती 
घंटियों की तरह और धरती 
की तरह काटने लगती हो  
चक्कर मेरे मैं  के चारो 
ओर !
मैं से हम बनाने की 
उत्तकंठ अभिलाषा लिए 
तुम उस पल में एक 
योगाभ्यासिनी के स्वरुप 
होती हो !
और मैं होता हूँ तुम्हारा 
वैदिक मंत्र जिसे उच्चारित 
कर तुम पा लेती हो मेरा 
समूल ! 
और एहसास भर देती हो 
मेरे अंदर सम्पूर्णताः का 
फिर उस सुबह स्वर 
गुंजारित प्रतीक्षारत हो 
उठता हूँ !  
उसी मौन का जो मुझमे
जगाती है तुम्हारे प्रेम की 
आकंठ प्यास !

Sunday, 1 September 2019

मैं क्यूँ सोचता हूँ तुम्हे !


मैं क्यूँ सोचता हूँ तुम्हे !

क्यूँ सोचता हूँ मैं तुम्हे आज बताना है तुम्हे ; 
जरा पास आओ क्यूँ सोचता हूँ तुम्हे !
तुम्हारी खनक भरी हंसी जब गूंजती है ;
मेरे कानो में तब सोचता हूँ मैं तुम्हे !
तुम्हारा अक्स मेरे दर-ओ-दिवार पर ; 
जब उभर आता है तब सोचता हूँ तुम्हे !
रात के अँधेरे में चाँद की चाँदनी बनकर ;
जब मेरे ख्यालों की छत पर आती हो तुम ! 
मेरी दी हुई वो पहली पायल पहन कर 
तब मज़बूर हो कर सोचता हूँ मैं तुम्हे !
घने काले बादल जब घिर आते हैं और उन 
बादलों से रिसकर बूंदों के स्वरुप गिरती हो तुम !  
मुझ पर तो भीगा-भीगा मैं ऊष्मा की तलाश ; 
में खोजता हूँ तुम्हे तब सोचता हूँ तुम्हे !  
जब सुबह की पहली किरण के स्वरूप मेरे ; 
सिरहाने पर आकर मूझे छू लेती हो तुम !
बिलकुल गुनगुने अहसास की तरह 
तब मज़बूर होकर सोचता हूँ तुम्हे !
और इतना कुछ घटित होने के बाद भी ;
जब कभी खुद को बिलकुल तन्हा पाता हूँ !
क्यूँ सोचता हूँ मैं तुम्हे आज बताना है तुम्हे ; 
जरा पास आओ क्यूँ सोचता हूँ तुम्हे !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !