Thursday, 7 September 2017

रात की पूर्णता

जिस तरह चाँद
प्रेम में आता है 
यु रोज उस पर्वत 
के पार से इस पार 
और रात को देता है 
एक उद्देश्यपूर्ण की   
वैसा ही तो कुछ 
चाहा था मैंने भी 
जीना तुम्हारे साथ 
पर तुम नहीं चाहती थी 
शायद की मिले हमारे 
प्रेम को पूर्णता इसलिए
सिर्फ एक मेरा चाहना 
रह गया अधूरा 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !