Wednesday, 6 September 2017

प्रेम था निर्भीक

उसने शायद कल्पना 
की होगी मेरे प्रेम की 
और मान लिया होगा 
उसको एक अंगूठी पर
मेरा प्रेम तो था एकदम 
निर्भीक और हठी जिमे
ना तो किसी का डर था
ना की सुनता था प्रेम के
के लिए दूसरे के द्वारा
कहे गए कोई भी सब्द 
वो तो एक आवरण सा था
जो छाया रहता था हर वक़्त
उसके चारो ओर पर उसने 
शायद मेरे प्रेम को समझा
एक अंगूठी नहीं समझी वो
की मेरा प्रेम  निर्भीक था 
जो बहा ले जाएगा मुझे 
मेरे अवसान की ओर

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !