आज के ज़माने में
प्रेम की भी उम्र तय
होने लगी है आज
सिर्फ पुरुष ही नहीं
बल्कि स्त्रियाँ आगे
बढ़कर समय तय करती है
अपने प्रेम से मुक्त होने का
और पुरुष कांपते हुए
निभा रहे होते है अपना "प्रेम"
और स्त्रियाँ कुछ समय
सहती है अपने "प्रेम"को
जैसे तीर सहता है अपनी
ही प्रत्यंचा का तनाव
ताकि जब वो छूटे प्रत्यंचा से
तो जा सके बहुत दूर
ताकि मुक्त होकर
उड़ सके खुले गगन में
अब बंधन सहा नहीं जाता उनसे
प्रेम की भी उम्र तय
होने लगी है आज
सिर्फ पुरुष ही नहीं
बल्कि स्त्रियाँ आगे
बढ़कर समय तय करती है
अपने प्रेम से मुक्त होने का
और पुरुष कांपते हुए
निभा रहे होते है अपना "प्रेम"
और स्त्रियाँ कुछ समय
सहती है अपने "प्रेम"को
जैसे तीर सहता है अपनी
ही प्रत्यंचा का तनाव
ताकि जब वो छूटे प्रत्यंचा से
तो जा सके बहुत दूर
ताकि मुक्त होकर
उड़ सके खुले गगन में
अब बंधन सहा नहीं जाता उनसे
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