Monday, 11 September 2017

खुद छाया ना बन जाओ

शायद तुमने मुझे
अपने सपनो में 
इतना देख लिया की 
तुम्हारी बाहें जिनको 
मेरी छाती से चिपटने की 
आदत सी हो गयी थी 
मेरी छाया के आलिंगन से 
इसलिए मेरी देह के 
आकार को लिपट ना पायी  
और शायद जो कई सालो से
बसा था तुझमे उसी को 
तुम वास्तव में देख 
खुद छाया ना बन जाओ  
इसलिए तुमने उसी 
छाया के साथ रहना
उचित समझा बजाय 
की मेरे प्रत्यक्ष दवरूप के 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !