Friday, 29 September 2017

प्रेम महसूसने की विधा है


प्रेम है क्या ?
मैंने देखा उसका चेहरा 
गुलाब के फूल में...
मगर मैं  कुछ नहीं समझा  
मैंने सुनी उसकी आवाज़ 
कोयल की कूक में...फिर भी
मैं  कुछ नहीं समझा  
मैंने झलक देखी उसकी , 
हिरन की चाल में, 
बसंत के रंगों में 
रहमान के संगीत में 
फिर भी मैं कुछ नहीं समझा 
मैंने पैगम्बरों से जानने 
की कोशिश की उसके बारे  
और पाया कि वो भी 
मुझसे अधिक कुछ नहीं जानते
प्रेम के बारे किँयु की 
प्रेम समझने की वस्तु नहीं है 
प्रेम महसूसने की विधा है 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !