Friday, 8 September 2017

क्या-क्या नहीं खोया

तुमने क्या-क्या नहीं खोया 
यंहा तक की जो था सब
तुम्हारे ही अंदर वो भी है खोया
ये दूरिया ही तो थी जिसने हमे
रखा था अलग कर और ये मेरा
पागलपन ही तो है जो अब भी
बंधे है हम दोनों एक ही डोर में
देखो अगर प्रेम के सृजन को तो
सूरज की किरण भी कोमल
महसूस होती है किन्यु की
उस किरण के बिना कोई फूल
खिलता कंहा है धरती पर
और अगर देखो नहीं
उस इसे प्रेम की नज़र से
तो वो किरण चुभती भी है
प्रेम बंधन को स्वीकारता है
और स्वक्छंदता पैरों को
कहा बांध सकती है 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !