Thursday, 14 September 2017

जिस तरह चिलचिलाती
दोपहरी में बारिश की
नन्ही-नन्ही बूंदें कर देती है
दोपहर को रोशन ठीक
उसी तरह प्रेम को भी
प्रेमिका अपने साथ से
कर देती है रोशन किन्यु की
यह भीगी दोपहरी लौटा
लाती है वह उष्मा
जो प्रेम कई बार
खो देता है अपनी
नादानियों से

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !