Monday, 1 May 2017

अटूट प्यार










भूल जा एक
स्वप्न जानकर
उसके प्रेम को
भूल जा कोई है
महकाने दुनिया
रंग देने अपने रंग मे
तेरे तन मन को,
उसे अटूट प्यार
किया ना पागल ने
मन क्या तन
भी वार दिया
ये भी ना सेाचा
ये भी ना जाना
कल क्या होगा,
लूट ले जाएगी वो,
तेरा तन - मन
ओर सुख चैन,
सब कुछ,
और तू पागल
यु ही बैठा रहेगा
घुटनो मे मुंह छुपाये
उसे याद करके
इसी पेड के नीचे
तालाब किनारे
उसका इंतजार करता हुआ 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...