Saturday, 20 May 2017

सिमटता फैलता सा मैं







तेरे आलिंगन में 
सिमटता फैलता 
सा मैं  ...मरते 
मरते थोड़ा सा 
और जी लेता 
हु मैं  ..कुछ
पल का मिलन 
फिर पूरी रात 
और दिन का 
बिछुड़ना जैसे 
लहरों का किसी 
साहिल से दूर जाना 
फिर मिलने की 
चाह में तेरी ये 
बिछुड़न कैसे सहता
हु मैं क्या कभी 
महसूस पायी हो तुम ?

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