अतीत के पन्ने
पलटते पलटते
बहुत दूर तक
निकल आया था मैं
तस्वीरें अब धुधंली
हो गई थी
वक्त की बारिश ने
शब्दों से जैसे उसकी
चमक छीन ली थी
पर उन धुधंली
तस्वीरों में एक
तस्वीर तुम्हारी भी थी
वही मासुमियत
मोटी मोटी आँखों
में सुबह की खिलती
किरणों की तरह
तुम्हारी मुस्कान
तुम्हारे साथ गुजरा
हुआ हर लम्हा
सबकुछ तो साफ साफ था
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