बेहद शर्द कंपकपाने
वाली रात मेरे घर के
बिलकुल सामने
वाला पेड़ अधिकतर
पत्तो के झड़ जाने
के बावजूद भी मेरी
नज़र टिकी है एक
उस हरे पत्ते पर
वो हरा पत्ता अभी अभी
ऊगा है एक डाल पर
बड़ा हो रहा है सहते हुए
शर्द और ज़र्द हवा बस
एक मेरा ख्वाब अटका है
उस खिलते बड़े होते हरे
पत्ते में उस एक हरे पत्ते के
गिरने के पहले आ जाए
बहार हरियाली की उस पेड़ पर
वैसी ही हरीतिमा जैसी
तुम्हारी यादो से बाबस्ता होती है
तुम्हारी मुस्कानो से सराबोर होती है
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