Tuesday, 2 May 2017

पत्तो के झड़ जाने के बावजूद








बेहद शर्द कंपकपाने
वाली रात मेरे घर के
बिलकुल सामने
वाला पेड़ अधिकतर
पत्तो के झड़ जाने 
के बावजूद भी मेरी 
नज़र टिकी है एक
उस हरे पत्ते पर 
वो हरा पत्ता अभी अभी 
ऊगा है एक डाल पर
बड़ा हो रहा है सहते हुए 
शर्द और ज़र्द हवा बस 
एक मेरा ख्वाब अटका है 
उस खिलते बड़े होते हरे
 पत्ते में उस एक हरे पत्ते के
गिरने के पहले आ जाए
 बहार हरियाली की उस पेड़ पर
 वैसी ही हरीतिमा जैसी 
तुम्हारी यादो से बाबस्ता होती है
तुम्हारी मुस्कानो से सराबोर होती है

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !