Wednesday, 3 May 2017

सबसे अन्जान







एक पत्थर,
गिरा और जा मिला
एक जलधारा मे,
पाने उन मातियो को,
बहता रहा प्रबल वेग से,
बहुत दिनो तक,
सबसे अन्जान,
स्वयं से भी बेखर,
छोड़ दिया,उसे धारा ने,
उस स्थान पर
जहाँ  बनता था
उस धारा का डेल्टा
सागर के ही किनारे,
मन मे आया
कहाँ  जाती है
ये जल धारा
मुझे यहाँ  छोडकर ?
ठीक उसी तरह
जिस तरह तुमने
छोड़ा मुझे मझदार में 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !