Monday, 17 July 2017

किवाड़ खटखटाती है रात 


सुनो 
सुबह रात 
का किवाड़ 
खटखटाती है 
तारों की छाँव में 
बैठी चांदनी  
मुस्कुराती है 
ऐ रात की स्याही 
तब तुम मेरे घर 
हमेशा के लिए 
ठहर जाना
किन्यु की मैं 
उस सियाह रात 
में मेरी प्रिय के
साथ रचूंगा एक
नया जीवन 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...