Saturday, 29 July 2017

मौन होना ही है

मौन तो होना ही है 
एक दिन चाहे नियति के चक्र में
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इस तरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ कर रह जाओगे..?   

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