Tuesday, 18 July 2017

तेरे सुर्ख होठों से.....

सुनो 
जब मेरे 
आँगन में 
सांझ की लाली 
उतर आएगी 
वक़्त कुछ 
पल के लिए 
ठिठक जायेगा 
और तुम्हें जब 
सुई शाम की 
सिन्दूरी आभा  
छू रही होगी 
मैं इक टीका 
चुरा लूँगा तेरे 
तेरे सुर्ख होठों से.....
और चारो तरफ 
तुम्हारी हंसी 
बिखर जाएगी 
और मैं फिर से 
वर्तमान में लौट 
आऊंगा .....

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