Saturday, 22 July 2017

इन तहों में 
ख़ामोशी क्यूँ इतनी 
मैं तो सिर्फ  
मेरे होने को खोजता हूँ ..
दो दरवाजों के पीछे 
हंसा क्यूँ मन इतना 
भीड़ में गूंज है कहाँ ...?
खोजता हूँ ...
तेरे होने से 
ठहराव है मुझमे 
पर इश्क है कहाँ ...?
अब तक 
खोजता हूँ ...
शायद एक जन्म
मेरा इसी खोज में 
बीत जायेगा ?      

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