Saturday, 22 July 2017

थाह मेरे प्रेम की

कहा मुमकिन है 
अभिव्यक्त कर 
पाना हु ब हु प्रेम को 
अर्थ से परे
अभिव्यक्ति से आगे 
क्या संभव है शब्दों में 
प्रेम समेट पाना 
क्या संभव है प्रेम को 
भाषा में व्यक्त कर पाना
क्या संभव है अभिव्यक्ति को
सही शब्द दे पाना
क्या संभव है 
चाहत के विस्त्रत आकाश को 
शब्दों में बाँध पाना
नहीं शायद इसलिए 
तुम समझ ही नहीं पायी
थाह मेरे प्रेम की अब तक 

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...